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________________ १३०. ए नव गमे संवेह, संख्यायु सन्नी तिरि । असुर विषे ऊपजेह, जघन्योत्कृष्ट अद्धा कह्यो । १३१. असन्नी असुर मझार, जावै तसु जघन्य गमे । तीन णाणत्ता धार, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता । १३२. युगल तिर्यंच सुचीन, असुर विषे जावै तसु । जघन्य गमेज तीन, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता ।। १३३. संख्यायु तिर्यंच, असुर विषे जावै तसु । जघन्य गमे अठ संच, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता ।। १३४. इम तिथंच विचार, जावै तसु जघन्य गमे । तीस णाणत्ता धार, पूर्वे आख्या ए सहु'। १३५. *शत चउवीसम द्वितीय देश ए, च्यार सौ में सोलमी ढाल बे। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश' मंगलमाल बे।। ढाल:४१७ १. मनुष्य थकी जो ऊपजै, असुरकुमार मझार । तो स्यूं सन्नी मनुष्य थकी, के असन्नी थी धार ? २. जिन कहै सन्नी मनुष्य थी, असुर विषे ऊपजेह । असन्नी मनुष्य मरी करी, असुर हुवै नहीं तेह ।। ३. जो सन्नी मनु थी हुवै, तो संख्यायु वास । तथा असंख्यायु मनुष्य ऊपजे तेह प्रकाश ? १. जब मणुस्सेहितो उववज्जंति-किं सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जति ? असण्णिमणुस्सेहितो उववज्जति ? । २. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति, नो असण्णिमणुस्सेहितो उववति । (श० २४।१३४) ३. जइ सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति-कि संखेज्जवासाउयसण्णिमणस्सेहिंतो उववज्जति ? असंखेज्जवासा उयसण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति ? ४. गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो वि उववज्जति । (श० २४११३५) ४. जिन कहै वर्ष संख्यायुष, यावत असंख वर्ष आयुष पिण, यावत उपजे तेह । ही ऊपजेह ।। *लय : धन्य प्रभु रामजी १. प्रस्तुत गाथा में 'तीस णाणत्ता' लिखा है। किन्तु पूर्ववर्ती तीन गाथाओं, णाणत्ता के यन्त्र और गमा के थोकड़े के अनुसार 'बीस णाणत्ता' होना चाहिए । जोड़ की हस्तलिखित प्रतियों में 'तीस णाणत्ता' ही है। संभव है श्रुति या लिपि में रहे अन्तर के कारण यह पाठभेद हुआ है। श० २४, उ० २, ढा० ४१६,४१७ ६१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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