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पहिले देवलोक में संख्याता वर्ष नों सनी तिच उपजे तेहनों अधिकार': ४२. जो वर्षां सभी तिरि इत्यादिक पूछेह जी । जिम संख वर्षायु तिरि असुर में, ऊपजता ने कहेह जी ॥ ४३. तिमहिन नव गम पिण इहां णवरं विशेष छे एह जी ।। स्थिति कुन काय संवेध नें उपयोग करीनें जाणेह जी ॥
वा०-- इहां का वरं ठिति संवहं च जाणेज्जा-ते स्थिति सौधर्म विषे ऊपजै, ते देव नीं जाणवी । इहा सौधर्म नों नाम तो नथी बा, पिण समचं स्थिति कही । ए तिथंच नां भव नीं स्थिति न सभव, ते असुरकुमार ने विषे संख्यात वर्षायु सन्नी तियंच ऊपजे, ते सन्नी तिर्यंच नीं स्थिति प्रथम तीन गमे जधन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट कोड़ पूर्व । मझम तीन गमे जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूत्तं । उत्कृष्ट तीन गमे जघन्योत्कृष्ट कोड़ पूर्व । असंख्यात वर्षायुष सन्नी नियंच सौधर्मे ऊपजै, तेहनीं पिण नव गमे एतलीज स्थिति हुवै, ते मार्ट ए तिर्यच नीं स्थिति न संभवं । सौधर्म देवपण ऊपजै, ते देव नीं स्थिति संभवे । जे पूर्व कहा - संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य जोतिषी में ऊपजे. तेनां प्रश्नोत्तर में जिम असुरकुमार ने विषे सख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य ऊपजता नैं ९ गमा कह्या तिम कहिवा णवरं जोतिसियठिति सवेह च जाणेज्जा । इहां जोतिषी नों नाम लेई नैं का तिम इहां सौधर्म नों नाम नथी लीधूं । पिण स्थिति सौधर्म नीं संभवे ।
बलि ख्याता वर्षायु सन्नी तिथंच जोतिषी में ऊपजै तिक पिण जिम असुरकुमार नेवि संख्यात वर्षायु सन्नी तियंच ऊपजता ने कहा, तिमज नवही गमा कहिबा । णवरं जोतिसियठितिसंवेह च जाणेज्जा । इहां पिण जोतिषी रो नाम लेई देव नीं स्थिति कही, निम इहा गोधर्म देव नीं स्थिति जाणवी ।
तथा आगल एहवूं कहिसे
सख्याता वर्षायुष सन्नी मनुष्य सौधर्म में ऊपजै, ते जिम असुरकुमार नै विषे संख्याता वर्षायुष सन्नी मनुष्य उपजतां नैं कह्या, तिमहिज नव गमा कहिवा णवरं सोहम्मग देव ठिति संवेह च जाणेज्जा । इहां पिण देव नी स्थिति कही, इम आगल पिण सनतकुमार महेंद्रादिक नाम लेई देव नीं स्थिति कही। तिम इहां सौधर्म नो नाम तो नथी लियो समर्च स्थिति कही, पिण देव नीं स्थिति जाणवी ।
नागकुमार में तो
तथा असंख्याता वर्षायु सन्नी तिर्यंच व्यंतर में ऊपजता नै बिचला तीन गमा अने छेहला तीन गमा जिम नागकुमार नां उद्देशा में कह्या, तिम कहिवा । नवरं ठितिसवेह च जाणेज्जा । इहां विण समर्च स्थिति कही, वाणव्यंतर नों नाम नथी का । पिण ए वाणव्यंतरां नीं स्थिति संभव । जे उत्कृष्ट देश ऊग दोय पल्य नी स्थिति, इहां व्यंतर में एक पल्य नीं स्थिति | तिम संख्यात वर्षायु सन्नी तिथंच सौधर्म में ऊपजै, तिहां पिण देव नीं स्थिति जाणवी ए स्थिति कही ते प्रथम उपपात द्वारे एतली स्थिति में ऊपजं । प्रथम द्वार में फेर जन संवेध ते छेहला वीसमा द्वार में फेर जाणवूं । ४४. आपण सन्नी तिरि हुवै,
जघन्य काल स्थितिक जिह वार जी ।। सोनूई गमा विषे तदा एह लढी सुविचार जी ।। लद्धी
*लय : मम करो काया माया
१. देखें परि. २, यंत्र १५२
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भगवती जोड़
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४२. जइ संखेज्जवासाउयसणिपंचिदिय ? संखेज्जवासाउयस्स जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स
४३. तहेव नव वि गमा, नवर ठिति संवेहं च जाणेज्जा ।
४४. जाहे अपना बहुमणकालदुतियो भवति ताहे विगमए
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