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________________ २ प्रथम नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनो यंत्र (२) गमा २०द्वार नी संख्या संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टिद्वार जान-अशानदार योगद्वार | उपयोग उपपातद्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण दार [संघयण द्वार जघन्य उत्कृष्ट | ६ अवगाहना द्वार | जघन्य | उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक १० हजार वन १सागर १२.३ संख्याता अंगुल ६ ३भजना ३मजना| ३मन, वचन. हजार योजन साकार अनाकार १० हजार वर्ग असंख्याता असंख ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १सागर १सागर जधान ओधिक १० हजार वर्ष १सागर अंगुल ३ पहिली - १मिया २नियमा| मन, वचन, सागर १.२.३ ऊपजे [जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १सागर १० हजार वर्ष १सागर अराख्याता ऊपजे असंख भाग उत्कृष्ट नै ओधिक हजार वर्ष १२.३ संख्याता अगुल ३भजना | भजना| ३ मन, वचन् | साकार अनकार ० हजार वर्ष ऊपज उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट उत्कृष्ट | ० हजार वर्ष सागर असंख्याता ऊपजे असख भाग हजार जोजन ३ प्रथम नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनो यंत्र (३) गमा २० द्वार नी संरख्या उपपातद्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार शान-अज्ञानद्वार योग द्वार | उपयोग द्वार परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट संघयण द्वार ६ अवगाहना द्वार | संठाण द्वार जघन्य । | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १२.३ संख्याता ओधिक नै ओधिक १० हजार वर्ष ओधिक नै जघन्य हजार वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट १सागर १सागर १० हजार १सागर प्रवक अंगुल vजना ३भजना १,२.३ संख्याता भजना भजना३ । जघन्य नै औधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ग १सागर १सागर १० हजार वर्ष १सागर पृथक अंगुल पृथक अंगुल १२.३ सरण्याला | ३ | ४भजना भजना ३ उत्कृष्ट नैं ओघिक हजार वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य १० हजार वर्ष उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट १सागर १सागर १० हजार वर्ष १सागर ऊपजे ५सी धनुष्य सौ धनुष्य दूजी नरक शक्करप्रभा में २ ठिकानां ना ऊपजे-संख्याता वर्ष नां सन्नी लियंच पदिय १, संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य। ४ दूजी नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय उपजै तेहनों यंत्र (9) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार | संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगदार परिमाण द्वार उत्कृष्ट अवगाहना द्वार | ತಜ್ಞ १ संख्याताया ओधिक ओधिक १सागर |ओधिक जघन्य १सागर औधिक नै उत्कृष्ट ३सागर ३सागर १सागर अंगुल नों असंख १हजार योजन १२३ ऊपरी ३सागर ऊपजे १२.३ ऊपजे पृथक जघन्य नै औधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १सागर १सागर ३सागर ३सागर १सागर ३सागर संख्याता या असंख्याता उपजै अंगुल नों असंख भाग पहली नियमा १२.३ ऊपजे | उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट सागर सागर ३सागर १सागर ३सागर संख्याताया असंख्याता उपजै अंगुल नों असंख भाग हजार योजन भजना भजना २१२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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