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________________ ९५. ईसाणदेवे णं भंते ! जे भविए? ५६. उत्कृष्ट अद्धा सोय, ते पिण दोय भवां तणों। सोहम्म सागर दोय, वर्ष सहस्र बावीस महि । ८७. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। एक पल्योपम लेह, अन्तर्मुहुर्त अधिक ही। ८८. उत्कृष्ट अद्धा लेख, ए पिण दोय भवां तणों। एक पल्योपम पेख, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ८९. पंचम गमे संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । एक पल्योपम लेह, अन्तर्महुर्त अधिक फुन ।। ९०. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । एक पल्योपम लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ९१. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। कहियै सागर बेह, अन्तर्महतं अधिक फुन । ९२. उत्कृष्ट अद्धा सोय, ए पिण बे भव नों तसु । सोहम्म सागर दोय, वर्ष सहस्र बावीस महि ।। ९३. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । बे सागर तसु लेह, अन्तर्महुर्त अधिक महि ।। ९४. नवम गमे संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । सोहम्म सागर बेह, वर्ष सहस्र बावीस महि । पृथ्वीकाय में ईशानवासी देव ऊपज, तेहनों अधिकार'९५. हे प्रभु! देव ईशाण जे, पुढवीकाय विषेहो जी। जे ऊपजवा जोग्य छै, इत्यादिक इम लेहो जी ।। ९६. सुर ईशाण नां पिण वली, इमहिज नव गम भणवा जी। णवरं सुर स्थिति में वली, अनुबन्ध इम थुणवा जी ।। ९७. जघन्य पल्य जाझी कही, उत्कृष्ट स्थिति अनुबन्धो जी। साधिक बे सागर तणी, शेष तिमज सह संधो जी ।। पृथ्वीकाय में पांच स्थावर ऊपज, तेह में नाणत्ता सोरठा ९८. पृथ्वी पृथ्वी मांय, जावे तसु जघन्य गमे । च्यार णाणत्ता पाय, प्रथम तीन लेश्या हुई। ९९. जघन्य स्थिति अनुबन्ध, माठा अध्यवसाय तसु । उत्कृष्ट गमेज संध, स्थिति अनुबन्ध बे णाणत्ता ॥ १०.. अप पुढवी में आय, तेहनां पिण जघन्ये गमे। च्यार णाणत्ता पाय, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता । १०१. तेऊ पृथ्वी मांय, आवै तसु जघन्ये गमे । तीन णाणत्ता पाय, लेश्या नों कहिये नथी॥ १०२. वायु पृथ्वी मांय, आवै तसु जघन्ये गमे । ___ च्यार णाणता पाय, समुद्घात वैक्रिय बध्यो। १. देखें परि. २, यंत्र ४३ *लय : कर जोड़ी आगल रही ९६. एवं ईसाणदेवेण वि नव गमगा भाणियव्वा, नवर ९७. ठिती अणुबंधो जहण्णेणं सातिरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगाई दो सागरोवमाई। सेसं तं चेव १-९॥ (श० २४१२१९) श० २४, उ० १२. दा० ४२३ ११७. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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