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सोरठा १९४. धुर गम में अवगाह, पृथक कर नी जघन्य त्यां ।
इहां जघन्य पिण ताह, धनुष्य पंच सय नीं कही। १९५. *सप्तम अष्टम नवम गमा विषे, जघन्य स्थिति पूव्व कोड़ी।
उत्कृष्टी पिण पूर्व कोड़ी, एवं अनुबंध जोड़ी ।।
१९५. ठिती जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी।
एवं अणुबंधो वि।
सोरठा १९६.धुर गम स्थिति अनुबंध, जघन्य वर्ष पृथक तिहां ।
इहां जघन्य पिण संध, पूर्व कोड़ पिछाणजो॥ १९७. *नवही गमक विषे नारक स्थिति, वलि संवेध पिछाणी।
सर्वत्र नव गम बे भव कहिये, मनुष्य सातमी माणी ।।
१९७. नवसु वि एतेसु गमएसु नेरइयट्ठिति संवेहं
जाणेज्जा । सम्वत्थ भवग्गहणाई दोण्णि
सोरठा
१०२. जघन्य अने उत्कृष्ट, बावीस सागर आउछ ।
१९८. षट गम पूर्वे ख्यात, स्थिति सोरठिया दुहा विषे । तमतमा स्थिति अवदात, प्रगट संवेध कह्यो वली ॥
उत्कृष्ट ने ओघिक (७) १९९. जेष्ठ स्थितिक मनु जाय, ओधिक स्थितिके सप्तमी ।
बावीस सागर पाय, उत्कृष्ट तेतीस दधि विषे ।। २००. अद्धा संवेध जघन्य, बावीस सागर कोड़ पुव्व । उत्कृष्ट अद्धा जन्य, कोड़ पूर्व तेतीस दधि ।
उत्कृष्ट नैं जघन्य () २०१. जेष्ठ स्थितिक मनु इष्ट, नरक सातमी नै विषे ।
जघन्य अने उत्कृष्ट, बावीस सागर आउखै ।। २०२. कायसंवेधज काल, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध ।
बावीस सागर न्हाल, अधिक कोड़ पूर्व वली ।। २०३. *यावत नवम गमे इम कहिवो, काल आश्रयी ताह्यो ।
जघन्य अद्धा जे तेतीस सागर, कोड़ पूर्व अधिकायो ।। २०४. उत्कृष्टो पिण तेतीस सागर, पूर्व कोड़ी इष्टं ।
प्रगट पाठ मांहि प्रभु आखी, बिहुं भव स्थिति उत्कृष्टं ।। २०५. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो।
उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट नवम गम, मनुष्य सप्तमी न्हालो।
वा०-प्रथम नारकी में सन्नी मनुष्य जावै, तेहनां जघन्य भव २, उत्कृष्ट भव८ । नाणत्ता जघन्य गमे ५, तेहनों विवरो-अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट पृथक आंगुल नी १, ज्ञान तीन री भजना २, समुद्घात पांच ३, आउखो पृथक मास ४, अनुबंध आउखा जेतो ५, उत्कृष्ट गमे ३ णाणत्ता-अवगाहना ५०० धनुष्य १, आउखो कोड़ पूर्व २, अनुबंध आउखा जेतो ३।।
सातमी नारकि सन्नी मनुष्य जावै, तेहना जघन्य भव २, उत्कृष्ट भव २ । जघन्य गमे ३ णाणत्ता एवं चेव । उत्कृष्ट गमे ३ णाणत्ता एवं चेव ।
२०३. जाव नवमगमए। कालादेसेणं जहण्णणं तेत्तीसं
सागरोवमाइं पुवकोडीए अन्भहियाई। २०४. उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाई पुवकोडीए
अब्भहियाई २०५. एवतियं कालं सेवेज्जा एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७-९।
(श० २४।११४)
*लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो
५० भगवती जोड़
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