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सोरठा
११५. मज्झम गमे सुइष्ट, सुइष्ट, असुरकुमार तभी कही। स्थिति जघन्य उत्कृष्ट वर्ष सहस जे दश तणों ॥। ११६. चरम गमे कुन तीन, असुर स्थिति जघन्योत्कृष्ट । साधिक सागर चीन, इतरो विशेष जाणवो || ११७. *शेष अधिक गमा नीं पर रे, परिमाण संघयणादि जेह रे । कहिवी छे तेहनीं लद्धी रे लाल, बलि जाणवू कायसंवेह रे ।।
बा० - 'लेशद्वारे - भवणपति पृथ्वीकाय में ऊपजे, तिणरा अधिक गमा में तो लेश्या ४ कही । अनं तिणरो जघन्य गमो ठिति, अनुबंध बिना ओधिक नैं भलायो । तिण भलावण मे तो लेश्या ४ हुवे ।
उत्तराध्येन अध्येन ३४ । ४८-५१ मे भवणपति में लेश्या री स्थिति कही ते कहै -
कृष्ण लेश्या री स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष, उत्कृष्ट पल्य नों असंख्यातमो भाग । अनं जेतली कृष्ण लेश्या री उत्कृष्ट स्थिति, ते ऊपर एक समय अधिक नील लेश्या री जघन्य स्थिति अने उत्कृष्ट पल्य रो असंख्यातमों भाग अधिक । ओधिक अनें उत्कृष्ट नील लेश्या री स्थिति सूं एक समय अधिक कापोत री जघन्य स्थिति अने उत्कृष्ट पल्य रो असंख्यातमों भाग अधिक । तिण उपरंत आउखावाला में एक तेजु पावै । तेजु री स्थिति भवणपति में जघन्य १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट एक सागर जाझी कही। इण वचने जघन्य १० हजार वर्ष आयु में लेश्या दो — कृष्ण अनं तेजु संभवे । उत्कृष्ट आयुवाला में एक तेजु संभवे ।
इहां असुरकुमार पृथ्वी में प्रथम गमे ४ लेश्या कही । जघन्य उत्कृष्ट गमे ठिति, अनुबंध विना अधिक नैं भलाया । तिण लेखे ४ लेश्या हुवै । पिण नवरं कही जघन्य गमे १० हजार वर्ष आउखा वाला में लेश्या २, उत्कृष्ट आयु वाला मे लेश्या १ – इम न कह्यो । लेश्या से णाणत्तो नथी । तेह्नों न्याय - एक-एक देव में लेश्या एक-एक हीज पावे । तिण कारण लेश्या रो नाणत्तो नयी कह्यो दी । पण उत्तराध्येन [ ३४ ४८, ५३ ] मे कृष्ण अनं तेजु नीं जघन्य १० हजार वर्ष नीं स्थिति कही। किणहिक में कृष्ण, किणहिक में तेजु, अनं उत्कृष्ट आखा बाल में १ तेजु कही। इण वचन सूं जघन्य गमे २ लेश्या, उत्कृष्ट गमे लेश्या १ ईज संभवे । वलि बहुश्रुत कहे ते सत्य व्यंतर पृथ्वी में ऊपजे, १०. भवनपति अने व्यंतर अप में, वनस्पति में, तियंच पंचेंद्रिय में, मनुष्य मे ऊपजतां लेश्याद्वार में एहिज न्याय जाणवो ।
ज्ञानद्वारे असुरकुमार पृथ्वीकार्य में ऊपने तिनमें प्रथम हमे तीन ज्ञान नीं नियमा अने ३ अज्ञान नीं भजना कही । तिणमें असन्नी मरि ने जाय तिवारे अंतर्मुहूर्त विभंग अज्ञान न हुवै, ते मार्ट तीन अज्ञान नीं भजना कही । अनें उत्कृष्ट गमे लब्धि ओधिक नैं भलाई । पिण उत्कृष्ट गमे तो आयु सागर जाको । अ असन्नी असुरकुमार में जघन्य १० हजार वर्ष आऊखे ऊपजे । पल्य
असंख्यात भाग आयु पावे तिण में तो ३ अज्ञान नीं भजना पिण साधिक १ सागर उत्कृष्ट आयु विषे तो असन्नी न ऊपजै, ते मार्ट उत्कृष्ट गमे ३ अज्ञान *लय : धोज करें सीता सती रे लाल
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११५, ११६. मल्लिएसु पछिल्लएसु' इत्यादि, वयं नेह स्थितिविशेषो मध्यमगमेषु जघन्यासुरकुमाराणां दशवर्षसहस्राणि स्थितिः अन्त्यगमेषु च साधि सागरोपममिति । (० ० ८३२) ११०. सेसा ओड़िया चैव लद्धी कायसंदेह च जायेगा।
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श० २४, उ० १२, डा० ४२२ १०९
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