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________________ न नियमा संभवे । ते भणी भलावण में लाभे ते लेणा । किंचित फर्क जाणी सूत्रे न कह्यो एहवो जणाय छे। तथा असन्नी भवणपति में जाय, तेहनों आउखो उत्कृष्ट पल्य नैं असंख्यातमे भाग कह्यो । सन्नी मरिमं जाय, तेहनों आउखो उत्कृष्ट १ सागर जाभो कह्यो । तिहां असन्नी मरि ने जाय, ते असन्नी नीं अपेक्षया उत्कृष्ट आयु, सन्नी मरि नैं जाय ते सन्नी नीं अपेक्षया उत्कृष्ट आयु । ए बेहूं उत्कृष्ट गमां में लेखण्या ' तो ते पण ज्ञानी जाणं । वलि बहुश्रुत कहे ते सत्य । नव निकाय अने व्यंतर पृथ्वी में ऊपजे । १० भवनपति अने व्यंतर अप में वनस्पति में, तिथंच पंचेंद्री में, मनुष्य में ऊपजतां ज्ञानद्वार में एहिज न्याय जाणवो । वेद द्वारे - असुरकुमार पृथ्वी में ऊपजै तिणमें प्रथम ओधिक गमे वेद २ कह्या - स्त्री, पुरुष । अनं उत्कृष्ट गमे अधिक नैं भलायो । ते भलावण में तो २ वेद आया । अनैं देवी नों आउखो उत्कृष्ट ४ ।। पल्य नों हुवै । अनैं उत्कृष्ट गमे तो आयु जघन्य उत्कृष्ट सागर जाझो कह्यो। इण वचन सूं तो उत्कृष्ट गमे एक वेद संभव तो अधिक नैं भलायो ते किम ? इति प्रश्न द्वार में उत्कृष्ट आयु स्त्री वेद में तो देवी नों उत्कृष्ट आयु में उत्कृष्ट वेद नों आयु लियो हुवे, इण न्याय तो उत्कृष्ट गमे २ वेद हुवे अने उत्कृष्ट सागर जाभो ईज लेवं तो १ पुरुष वेद ईज हुवै। नवनिकाय, व्यंतर, ज्योतिषी भने पहिला दूजा देवलोक रां देवता पृथ्वी में उपजे १० भवनपति अनं व्यंतर अप में, वनस्पति में, तियंच पंचेंद्रिय में अने मनुष्य में ऊपजतां वेद द्वार में एहिज न्याय जाननो' (ज० स०) 1 उत्तर - इहां वेद लियो हुवै, पुरुष वेद ११८. बजे सगलाइ गमा ने विधे रे, वे भव ग्रहण करेह रे । जाव नवमा गमा नें विषे रे लाल, साख्यात सूत्रे लेह रे ॥ असुरकुमार पृथ्वी नैं विषे ऊपजै, तेहनां ९ गमा जुदा-जुदा कहै - सोरठा ११९. घुर गम काय संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूर्त्त अधिक फुन । १२०. उत्कृष्ट काल जगीस, साधिक सागर असुर स्थिति । वर्ष सहस्र बाबोस, पुढवी पिण उत्कृष्ट स्थिति ॥ १२१. द्वितीय गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस दश तेह, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ॥ १२२. उत्कृष्ट अद्धा जाण, ए पिण दोय भवां तणों । साधिक सागर माण, अंतर्मुहूर्त अधिक मही ॥ १२३. तीन गमे जगीस, बे भव अद्धा जपन्य थी । वर्ष सहस्र बत्तीस जघन्य असुर महि जेष्ठ स्थिति ॥ १२४. उत्कृष्ट मद्ध जगीस, साधिक सागर असुर में । वर्ष सहस्र बावीस, बिहुं भव नीं उत्कृष्ट स्थिति ॥ १२५. चउये गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य बी । वर्ष सहल दश लेह, अंत अधिक फुन ।। १२६. उत्कृष्ट अद्धा तास, वर्ष सहस्र बत्तीस नीं । बावीस महि || असुर सहस्र दश वास, वर्ष सहस्र ११० भगवती जोड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only ११८. सम्वत्थ दो भवग्गहणाई जाव नवमगमए, www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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