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असुर नी स्थिति नै विषे ऊपज । अनैं परिमाणद्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे प्रथम गमे लद्धी कही, तिमज द्वितीय गमे जाणवी । भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४० हजार वर्ष ॥२॥
हिवै ओधिक नै उत्कृष्ट तृतीय गमे जघन्य नै उत्कृष्ट सागर जाझी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे प्रथम गमे लद्धी कही, तिमज तृतीय गमे जाणवी। भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास एक साधिक सागर, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ साधिक सागर।३॥
हिवं चतुर्थे गमे जघन्य नै ओघिक ए जघन्य स्थिति वालो मनुष्य असुर में विषे ऊपजे, ते जघन्य १० हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट साधिक सागर असुर नी स्थिति नै विषे ऊपज । अनै परिमाण द्वार सं लेई अनुबंध द्वार लगे लद्धी प्रथम गमा नी परै जाणवी । णवरं पांच बोलां में फेरअवगाहना जघन्य उत्कृष्ट पृथक आंगुल मी १। तीन ज्ञान, तीन अज्ञान नीं भजना २। समुद्घात पांच पहिली ३ । आऊ जघन्य-उत्कृष्ट पृथक मास ४ । अनुबंध आउखा जेतो ५-ए पांच णाणत्ता । अन कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास अनै १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ पृथक मास अनै ४ साधिक सागर ॥४॥ ___ जघन्य नै जघन्य पंचमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट दस हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे लद्धी चतुर्थ गमा नी पर जाणवी । अनै कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास अनै १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ पृथक मास ४० हजार वर्ष ।।
हिवै जघन्य नै उत्कृष्ट षष्ठम गमे जधन्य-उत्कृष्ट सागर जाझी असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै परिमाण द्वार सं लेई अनुबंध द्वार लगे चतुर्थ गमा नी पर जाणवी । अनै कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास अनै साधिक सागर, उत्कृष्ट ४ प्रथक मास ४ साधिक सागर ॥६॥
हिवै सप्तमे गमे उत्कृष्ट नै ओघिक ए उत्कृष्ट स्थितिवालो सन्नी मनुष्य असुर नै विषे ऊपजे ते जघन्य १० हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट साधिक सागर असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे लद्धी प्रथम गमा नी परै जाणवी । णवरं तीन बोलां में फेर-अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट ५०० धनुष्य १। स्थिति जघन्य उत्कृष्ट कोड़ पूर्व २। अनुबंध आउखा जेतो ३-ए तीन णाणत्ता । अनै कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य कोड़ पूर्व १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ साधिक सागर ॥७॥
हिवै उत्कृष्ट ने जघन्य अष्टमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट १० हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विष उपज । अने परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे लद्धी सप्तम गमा नी परै जाणवी । अनै कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य कोड़ पूर्व १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४० हजार वर्ष ।।८।।
हिवै उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट साधिक सागर असुर नीं स्थिति नै विषे ऊपजै । अने परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगै लदी सप्तम
६६ भगवती जोड़
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