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________________ ११८ मनुष्य में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१४) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार| अदगाहना द्वार | संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोग द्वार जघन्य | जघन्य जघन्य उत्कृष्ट १ २ ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य असंख भजना १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त | आंगुल नों असंखभाग भजना १.२.३ ऊपणे १हजार योजन अंतर्मुहूर्त | ओधिक नै उत्कृष्ट ३पल्य संख ३ ३अजना ३भजना १,२.३ ऊपजे आंगुल नों असख भाग १हजार योजन असंख ३पहली |जधन्यन ओधिक |जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १मिथ्या १काय अंतर्मुहूर्त | १अंतर्मुहूर्त | १ कोडपूर्व १२.३ ऊपजे २नियमा कोडपूर्व अंतर्मुहूत १ कोडपूर्व आंगुल नों असंख भाग आंगुल नों असंख भाग १हजार ३भजना ३भजना उत्कृष्ट नै ओघिक १अंतर्मुहूर्त | ३पल्य | उत्कृष्ट नै जघन्य । १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३ पल्य ३पल्य १२.३ ऊपजे असंख ऊपजे असंख ऊपजे पर्याप्त संखऊपजै आंगुल नों असंख भाग ११६ मनुष्य में असन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१५) गमा २०द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार | संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग कर उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट १ छेवटी पहली १मिथ्या नियमा | १काय ओधिक नै ओधिक | १अंतर्मुहूर्त | १कोडपूर्व ओपिक नै जघन्य १अंतर्मुहूर्त | १अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट | कोडपूर्व १कोडपूर्व | १२३ ऊपजै असंख्याता ऊपजै । असंख्याता ऊपज संख्याता ऊपरी आंगुल नों असंख माग १२० मनुष्य में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१६) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार संठाणद्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोग अवगाहना द्वार जघन्य | उत्कृष्ट अन तेहना नान उत्कृष्ट १ ४जना ३भजना ओधिकनै ओधिक । औधिक जमन्छ । अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त ३पल्य १अंतर्मुहूर्त १.२.३ ऊपर सख्याता ऊपजे आंगुल नों असख भाग ओधिकनै उत्कृष्ट पल्य संख्याता ४ भजना १,२,३ ऊपजै पृथक आगुल ५ सौ धनुष्य संख्याता १मिध्या २नियमा । १काया जघन्य नै ओधिक जघन्य नैजधन्य जान्य में उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १२.३ ऊपजे आंगुल नों असंखभाग आंगुल नों असंख भाग ४भजना भजना उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य । उत्कृष्ट नै उत्पष्ट अंतर्मुहूर्त । ३पत्न्य १अतर्मुहूर्त | गर्मुहूर्त १२.० ऊपरी संख्याता ऊपजे धनुष्य धनुष्य ३१० भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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