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________________ ८१. एतलो काल सेवै ते जंतु, करें गति आगति इतो कालो रे । उत्कृष्ट न अधिक गमक ए, दाख्यो सप्तम दयालो रे ॥ वा० इहां तीन भव सातमीं नां जघन्य स्थिति नां बावीस सागर नां ते मार्ट बावीस नै त्रिगुणा कियां छासठ सागर थया अन तिर्यच नां व्यार भव तिर्यंच कोड़ पूर्व उत्कृष्ट स्थिति नां ते मार्ट च्यार कोड पूर्व अधिक-ए उत्कृष्ट काल कह्यो । इहां कोई पूछँ - जे सात मैं गर्भं उत्कृष्ट नैं ओधिक छे, ते तियंच नों उत्कृष्ट आउखो अने नारकीनों अधिक मार्ट उत्कृष्ट तेतीस सागर नां दोय भव गिण्यां छासठ सागर हुवे । ते उत्कृष्ट स्थिति नां बे भव किम न गिण्या अन जघन्य स्थिति नां तीन भव किन न्याय गिण्या ? तेनो उत्तर - इहां कायसंवेध बीसमा द्वार नैं विषे एहवूं प्रश्न पूछ्यो जे सन्नी तिर्यंच मरी सातमीं जाय बलि तिहां थी नीकली सन्नी तिथंच हुवै। इम गतागति केतलो काल करें ? जद भगवंत काल नों जाब दियो- -जे भव आश्रयी जघन्य तीन भव, उत्कृष्टा सात भव । ते कोड़ पूर्व तिर्यच भव संबंधी अने बावीस सागर सातमीं नीं जघन्य स्थिति एतलं काल बे भव आश्रयी जघन्य कह्यो । अ उत्कृष्ट सात भव ते सप्तमी नां जघन्य स्थितिक नां तीन भव तेह्नां छासठ सागर गिण्या । अनैं प्यार तियंच नां भव संबंधी च्यार कोड़ पूर्व अधिक गिण्या । अने जो सातमीं नां दोय भव उत्कृष्ट आउखा नां गिण तो तिर्यंच नां उत्कृष्ट आउखा नां तीन भव नां तीन पूर्व कोड़ ईज हुवै, इम पांच भव गिण्यां छता उत्कृष्ट काल थोड़ो थावे अन सात भव नों काल गिण्यां छतां जघन्य स्थिति सातमी नां छासठ सागर हुवे अने उत्कृष्ट स्थितिक तिर्यच नां च्यार पूर्व कोड हुए एक पूर्व कोड काल वधै ते मार्ट उत्कृष्ट काल नीं वांछा लेखवी नैं सातमी ना जघन्य स्थिति नां छासठ सागर गिण्या । इम काल नो प्रश्न पूछ्ये छते उत्कृष्ट अधिक काल सात भव गिण्या इज हुवै अने पांच भव गिण्यां एक कोड पूर्व नो काल ओछो हुवै तिणसूं जघन्य स्थिति सातमी नां तीन भव नां छासठ सागर गिण्या । उत्कृष्ट ने जघन्य (८) ८२. हि पजत संपात वर्षायु सन्नी-तिरि ऊपजवा जोग्य सप्तम पृथ्वी, जघन्य स्थितिक नेरइयापणेहो रे ।। ८३. जघन्य स्थितिक विषे तेह ऊपनां, लब्धि बोल सह लहिये रे कायसंवेध पिण तिमहिज भगवू, सप्तम गम सम कहिये रे ।। उत्कृष्ट स्थितिक जेहो रे । उत्कृष्ट में उत्कृष्ट (९) ८४. तेहिज पत्त संख्यात वर्षायु सन्नी तिरि, अधो सप्तमी पृथ्वी विषे जे, ३४ भगवती जोड़ Jain Education International उत्कृष्ट स्थितिक जेहो रे । ५. उत्कृष्ट स्थितिक विषे ऊपनों लब्धि सर्व ही मणिवे रे। , यावत अनुबंध लग एकहि भवादेश इम युणियं रे || स्थिति उत्कृष्ट नेरइयापणेहो रे ।। ८१. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७ । (श० २४००) ८२,८३. सो चेव जहणका लट्ठितीएसु उववण्णो, सच्चेव संवेो विहेब सत्तममममसरियो ८ (२० २४८९) ०४०५ सो व उक्कोसकालद्वितीएस उववरणी एस चैव लड़ी जाव अणुबंधोति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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