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________________ ८६. भव आश्रयी जघन्य तीन भव, मच्छ नारक तिर्यंचो रे। उत्कृष्टा भव पंच नारक बे, तिरि भव तीन विरंचो रे ॥ ८७. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, नारक उदधि तेतीसो रे । ___कोड़ पूर्व बे अधिक जाणवा, बे तिरि भव स्थिति दीसो रे ।। ५८. उत्कृष्ट छासठ सागर नारक जेष्ठ स्थितिक भव दोयो रे । कोड़ पूर्व त्रिण तिर्यंच त्रिण भव, उत्कृष्ट आयू जोयो रे ।। ८९. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो रे । उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो नवम दयालो रे ।। ९०. तिथंच नारकि जावे तेहनां, नव गम भव अधिकारो रे । लब्धि बोल नी प्राप्ति दाखी, णाणत्ता भेद विचारो रे ।। ८६. भवादेसेणं जहणणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई। ८७. कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहि पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइ, ८८. उक्कोसेणं छावद्धि सागरोवमाई तिहिं पुवकोडीहि अब्भहियाई ८९. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९। (श० २४।९०) सोरठा ९१. तुर्य पंचम षष्ठम, जघन्य गमा त्रिण जाणवा । सप्तम अष्टम नवम, उत्कृष्ट गमाज तीन ए ।। ९२. असन्नी धुर नरकेह, जावै तसु जघन्य गमे। तीन णाणत्ता लेह, उत्कृष्ट गमेज दोय फुन ।। ९३. आयु जघन्योत्कृष्ट, अंतर्मुहुर्त जघन्य गम। __ अनुबंध इतोज इष्ट, अपसत्थ अध्यवसाय फुन ।। ९४. उत्कृष्ट गम अवलोय, आउ पूर्व कोड़ नों। ___ अनुबंध इतोज होय, आख्या ए बे णाणत्ता ।। ९५. सन्नि तिर्यंच जाय, सातुं नारकि तेहनां । जघन्य गमे कहिवाय, आठ-आठ है णाणता ।। ९६. अवगाहना जघन्य, असंख्यातमें भाग जे। आंगुल तणे सुजन्य, उत्कृष्ट पृथक धनुष्य नी ।। ९७. धुर लेश्या त्रिण पाय, दृष्टि एक मिथ्या कही। ___ ज्ञान नहीं तिण मांय, समुद्घात त्रिण प्रथम ही ।। ९८. अंतर्मुहुर्त स्थिति संध, अपसत्थ अध्यवसाय फुन । आयु जितो अनुबंध, अष्ट-अष्ट जघन्य गमे ।। ९९. उत्कृष्ट गमेज संध, आउ पूर्व कोड़ नों। आउ जितो अनुबंध, दोय-दोय ए णाणत्ता ।। १००. असन्नी धुर नरकेह, जावै तेहनां दोय भव । नव ही गमके लेह, नारक थी असन्नी न है । १०१. सन्नी पं. तिर्यंच, धुर षट नरके जाय तसु । जघन्य दोय भव संच, उत्कृष्ट अठ नव ही गमे । १०२. सन्नी पं. तिर्यंच, नरक सातमी जाय तसु । जघन्य तीन भव संच, नव ही गमेज जाणवा ।। १०३. उत्कृष्टा भव पंच, तृतीय छठे नवमे गमे। शेष गमे षट संच, उत्कृष्टा भव सात ह।। श. २४, उ.१, ढा०४१४ ३५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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