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________________ १०४. चवीसम शत देश प्रथम नों भिक्षु भारीमाल ऋविशय प्रसादे, चिउं सौ चवदमी ढालो रे । ऊपजै, हुवे ढाल : ४१५ 'जय जय' मंगलमालो रे । नारक में १. मनुष्य थकी जो स्युं सनी मनु थी के असन्नी ऊपजै नरक पूछे २. जिन कहै सन्नी मनुष्य मरि, पण असशी नहि ऊपजे, बलि ३. जो सनी मनु थी हुवे, तो स्यूं आउखावंत ऊपजै, कै असंख वर्ष वर्षायु दूहा ४. जिन कहै संख्यायुष मनु असंख वर्ष आयु सन्नी मनुष्य ३६ भगवती जोड़ Jain Education International नरक में ५. जो संख्याता वर्ष स्थिति जान स्युं पर्याप्त थी हुवै, कै अपजत्त पी भगवान ! थी जान ? *लय: प्रभवो चोर चोरां ने समझावै * लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो तथा +लय : लाल हजारी को जामो विराज ७. पर्याप्त संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य जेह ऊपजवा जोग्य अछ जी, नारक नैं ८. ते कति पुढवी विधे ऊपजे प्रभुजी ! जिन कहै रत्नप्रभा विधे जाव सप्तमी, पृथ्वी विषे सन्नी नरके थकी नहि पर्याप्त जिके, जिके, वर्षायु अपजत्त नहि ऊपजे, गणधार ॥ संख्यात ? जात ? मभार । ६. जिन कहै सभी मनु थी *भावं स्वामी, सनी मनुष्य सभी मनुष्य नारक में ऊपजे, तसु नव गमका कहिये रे ॥ जात । थात || जाय । थाय ? | संखेह । ऊपजेह || नोट : दूसरी लय में दूसरे और चौथे पद में रे रहेगा । नारक नव गमा। ध्रुपदं ध्रुपदं भगवान ? विषे जान ।। सातूं मांय । उपजाय || १. ज मह उवज्वंति - किसमिस्सेहितो जति ? असणिमणस्तो उपवति ? २. गोयमा ! समतेहितो उपयति नो अणिमस्सेहतो उववज्जंति । (०२४०९१) ३. महतो उपवति कि वासा उपसण्णमणुस्सेहितो उववज्जंति ? असंखेज्जवासाउयसणिमगुस्सेहितो उववति ? ४. गोयमा ! संखेज्जवासा उयसण्णि मणुस्सेहितो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से हितो उववज्जति । (२०२४।९२) ५. रामगुस्सेहितो उपयमंति किं पज्जत्तसंखेज्जवासा उयसण्णिमणुस्से हितो उवकति ? अपयत्तवासा उपसमिण से हितो उववज्जंति ? ६. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाज्यसण्णिमणुस्से हितो उववज्जंति, नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि( श० २४1९३ ) मणुस्मेहितोति । For Private & Personal Use Only ७. पज्जत्तसेवाउपसमिगुस्से णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, कतिसु पुढची उबवण्या ? गोयमा सत्तम पुडी उबवण्यातं जड़ारयणप्पभाए जाव असत्तमाए । ( श० २४ । ९४ ) www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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