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४१. षष्ठम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट ।
वर्ष सहस्र बत्तीस, व्यंतर पुढवी भव स्थिति ।। ४२. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी।
एक पल्योपम लेह, अंतर्महत अधिक ही ।। ४३. उत्कृष्ट अद्धा जाण, ए पिण दोय भवां तणों।
एक पल्योपम माण, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ४४. अष्टम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट ।
एक पल्योपम लेह, अंतर्मुहर्त अधिक फुन ।। ४५. नवम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट ।
एक पल्योपम लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।।
पृथ्वीकाय में ज्योतिषी ऊपज, तेहनों अधिकार' ४६. *जो जोतिषो सुर थकी, ऊपजै पुढवी मांह्यो जी। ___तो स्यूं चंद्र विमाण थी, जाव तारा थी आयो जी ? ४७. जिन कहै चंद्र विमाण थी, यावत तार विमाणो जी ।
जोतिषी सुर थो ऊपजै, पूढवी में पहिछाणो जी ।। ४८. जोतिषी देवा हे प्रभु ! पुढवीकाय विषेहो जी।
जे ऊपजवा जोग्य छै, ते कितै काल स्थितिके ऊपजेहो जी ? ४९. परिमाणादिक जे लद्धी, जिम कही असुर ने लेखो जी।
कहिवी तिणहिज रीत सं, णवरं इतरो विशेखो जो ।। ५०. लेश्या एक तेज हुवै, तीन ज्ञान नी ज्यांही जी।
नियमा तास कहीजिय, समदृष्टी रै मांही जी ।। ५१. नियमा तीन अज्ञान नी, सुर मिथ्याती मांही जी।
असन्नी मर नहिं ऊपजे, ते माटै कहिवाई जी ।।
४६. जइ जोइसियदेवेहितो उववज्जति-कि चंदविमाण
जोइसियदेवेहितो उववज्जति जाव ताराविमाण
जोइसियदेवेहिंतो? ४७. गोयमा ! चंदविमाण जाव ताराविमाण ।
(श० २४।२१४) ४८. जोइसियदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु
उववज्जित्तए? ४९. लद्धी जहा असुरकुमाराणं, नवरं
५०. एगा तेउलेस्सा पण्णत्ता । तिण्णि नाणा,
५१. तिणि अण्णाणा नियमं ।
५२,५३. 'तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा नियम' ति इहा
सञी नोत्पद्यते सज्ञिनस्तूत्पत्तिसमय एव सम्यग्दृष्टेस्त्रीणि ज्ञानानि मत्यादीनि इतरस्य त्वज्ञानानि मत्यज्ञानादीनि भवन्तीति, (व०प० ८३२)
सोरठा ५२. सन्नी मनु तियंच, उत्पत्ति-समय ईज ते।
समदृष्टि रै संच, नियमा तसु छ अवधि नी ।। ५३. सन्नी मनु तिर्यंच, उत्पत्ति-समय ईज ते ।
मिथ्याती रै संच, नियमा तसू छै विभंग नी ।। ५४. *स्थिति जघन्य पल्योपम तणों, भाग अष्टमो संधो जी। उत्कृष्ट पल्य लक्ष वर्ष नों, इतरोइज अनुबंधो जी।।
सोरठा ५५. भाग अष्टमो ईज, समुदायज उपचार थी।
अवयव विषे कहीज, तारक सुर सुरी आश्रयी।
५४. ठिती जहणणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं
पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं । एवं अणुबंधो वि।
५५. 'अट्ठभागपलिओवम' ति अष्टमो भागोऽष्टभागः स
एवावयवे समुदायोपचारादष्टभागपल्योपमं, इदं च तारकदेवदेवीराश्रित्योक्तम्, 'उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं' ति इदं च चन्द्रविमानदेवानाश्रित्योक्तमिति,। (०५०८३२)
* लय: कर जोड़ी आगल रहे १. देखें परि. २, यंत्र ४१
११४ भगवती जोड़
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