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जघन्य पृथक वर्ष स्थितिक नै विषे ऊपज, उत्कृष्ट कोड़ पूर्व आयु नै विष उपज । भने भवगाहणा, लेश्या, ज्ञान, ठिति, अनुबंध अनै संवेध-एहने विषे नानापर्यु जाणवू । जिम तिथंच उद्देशे कह्य, तिम कहिवू । इम जाव छठी लग जाणवू । सक्करप्रभा थी लेई छठी नां नेरइया तिथंच पंचेंद्री में ऊपजता ने अवगाहणा, लेण्या, ज्ञानद्वार में अज्ञान पिण ग्रहिवा । स्थिति, अनुबंध, संवेधे एहनुं नानापर्यु तियंच पंचेंद्रिय उद्देशे कह्य, तिम इहां सक्करप्रभादिक छठी थी निकली मनुष्य ने विषे ऊपजता ने अवगाहणा, लेश्या, ज्ञान, ठिति, अनुबंध अनै संवेध-एहन विषे नानापणु जाणवू । इहां लेश्या नों नानापणुं कह्य, ते पहिली में कापोत लेश्या, दूजी में ही कापोत लेश्या । एहन नानापणुं न हुवे ते भणी निकेवल दूजी नरक रा नेरइया आश्री न जणाय । दूजी प्रमुख जाव छठी तांइ रा नेरइया संभवै तथा तिथंच उद्देशे पाठ कह्यते कहै छै
इहां कह्यो-रत्नप्रभा विषे ९ गमा कह्या, तिम सक्करप्रभा नै विषे पिण कहिवा । एतलो विशेष--- शरीर, अवगाहणा इकवीसमा पद में कह्य तिम । ३ ज्ञान, ३ अज्ञान की नियमा। स्थिति, अनुबंध पूर्वे का तिम । इहां निकेवल सक्करप्रभा आधी वारता कही ते रत्नप्रभा नै भलाई, पिण णवरं पाठ में लेश्या नथी कही ते किम ? रत्नप्रभा में लेश्या छ तिकाईज सक्करप्रभा में छै ते मार्ट णवरं पाठ कही लेश्या मों फरक नथी पाइयो। इम नव गमा उपयोगे करि कहिवा।
___ इम यावत छठी पृथ्वी ताइ । एतलो विशेष-अवगाहणा, लेश्या, स्थिति, अनुबंध, संवेध जाणवा । इहां दूजी सूं लेई छठी मिलायां णवरं पाठ में लेश्या नों फरक पाइयो, लेश्या जुदी-जुदी ते मार्ट । अने ज्ञान नों फरक नथी पाड्यो । सक्करप्रभा कही नै जाव छठी पुढवी कहिवी, इम कही णवरं पाठ कह्यो जिण में ज्ञान नों फरक नथी पाइयो । तिहां दूजी सूं छठी - विषे ३ ज्ञान, ३ अज्ञान नीं नियमा छ ते मारी ज्ञानद्वार में फरक नथी पाइयो । ए तिथंच उद्देशा नी वारता कही ते मार्ट इण मनुष्य उद्देशा नै विषे रत्नप्रभा नी वक्तव्यता कही तिम सक्करप्रभा नी पिण कहिवी । णवरं जघन्य पृथक वर्ष अनं उत्कृष्ट कोड़ पूर्व आयु नै विषे ऊपजै । णवरं में सक्करप्रभा में विशेष जाणवू । अनै अवगाहणा, लेश्या, ज्ञान, ठिति, अनुबंध अनै संवेध---एहन विषे नानापणुं जाणवू । जिम तिथंच उद्देशे कह्य, तिम कहिवू । एतले अवगाहणा, लेश्यादिक संवेध नै विषे नानापणुं जाणवू । जिम तिथंच उद्देशे कह्य, तिम कहियो । इम जाव छठी तांइ एहवू कह्य । इण वचने करी रत्नप्रभा सूं लेइ छठी ताइ तिथंच उद्देशा नै विषे ए छ बोल कह्या तिम कहिवा।
__ तिहां तिथंच उद्देशे कह्य-रत्नप्रभा नै विषे कह्य तिम सक्करप्रभा नं विषे कहिवू । णवरं पाठ में लेश्या नों फरक नथी पाइयो तिम मनुष्य उद्देशा मैं विष पिण रत्नप्रभा में कह्यो तिम सक्करप्रभा में कहि, पिण तिण में लेश्या नों फरक न करिवो । अने तिर्यच उद्देशा नै विषे सक्करप्रभा नै विषे वारता कही-एवं जाव छठी इम कही। णवरं शब्द में ज्ञान नों फरक नथी पाड्यो, तिम मनुष्य उद्देशा नै विषे पिण सक्करप्रभा नै विषे कह्य । इम जाव छठी लगे कहिवू । णवरं शब्द में ज्ञान नों फरक नथी कहिवो ते मारी पहिली सूं जाव छठी रा नेरइया में अवगाहणा, लेश्या, ज्ञानादिक रो फरक पड़े ते बोल एवं जाव तमा पुढवीए इण पाठ पहिलां कह्या छ । तियंच उद्देशे तो रत्नप्रभा कही तिम सक्कर । पर्छ णवरं में लेश्या नों फरक नथी पाइयो अनै ज्ञानद्वारे फरक
श० २४, उ० २१, ढा० ४२९ १६७
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