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________________ ३३. सेसं तं चेव १-९। ३४. जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाए वि वत्तव्वया, २७. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थो। सागर एक कहेह, पृथक मास फुन अधिक ही। २८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहिये सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक ही। २९. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। सागर एक कहेह, मास पृथक फुन अधिक ही ।। ३०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहिये सागर च्यार, मास पृथक चिउं अधिक ही ।। ३१. नवम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थो । सागर एक कहेह, कोड़ पूर्व फुन अधिक ही ।। ३२. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहियै सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक हो ।। ३३. *शेष संघयणादिक सहु जी कांइ, तिरि पंचेंद्री विषेह । रत्नप्रभा नां नारका जी कांइ, ऊपजता तिम एह जी कांइ ।। मनुष्य में दूसरी स्यू छट्ठी नरक नां नेरइयां ऊपज, तेहनों अधिकार' ३४. जिम रत्नप्रभा नै विषे कही जी कांइ, वक्तव्यता अवलोय । तिमहिज कहिवी वारता जो कांइ, सक्करप्रभा में सोय जी कांइ।। ३५. णवरं जघन्य थी जाणवो जी कांइ, पृथक वर्ष स्थिति केह। उत्कृष्ट पूर्व कोड़ में जी कांइ, आयु विषे उपजेह जी कांइ।। ३६. अवगाहना लेश्या वली जी कांइ, ज्ञान स्थिति पहिछाण । अनुबंध फुन संवेध – जी काइ, भेद नानापणं जाण जी कांइ ।। ३७. जिमहिज तिरि उद्देशके जी कांइ, आख्यो तिम कहिवाय । एवं जाव तमा मही जी काइ, नारक लग वर न्याय जी कांइ ।। वा--जो रत्नप्रभा थकी मनुष्य में ऊपज तो कितै काल स्थितिक मैं विषे ऊपजै ? हे गातम ! जघन्य पृथक मास उत्कृष्ट कोड पूर्व आयु विषे ऊपजै । शेष वक्तव्यता जिम तियंच पंचेंद्रिय में ऊपजतां ने कही तिमज। पिण एतलो विशेष जाणवो-परिमाण जघन्य १, २, ३, उत्कृष्ट संख्याता ऊपज । जिम तिहां अंतर्मुहुर्त कह्यो, तिम इहां पृथक मास सं संवेध करिवो। हिवै सक्करप्रभादिक जाव छठी तांइ रो विस्तार कहै छ इहां पाठ में इम कह्यो-जिम रत्नप्रभा नी वक्तव्यता तिम सक्करप्रभा नी, पिण एतलो विशेष-जघन्य पृथक वर्ष नी स्थितिक नै विषे उत्कृष्ट पूर्व कोड़ आयु नै विषे ऊपजे । अवगाहणा १, लेश्या २, ज्ञान ३, ठिति ४, अनुबंध ५, संवेध ६- ए छह बोल नै विषे नानापणं वलि जाणवू । जिम तियंच पंचेंद्रिय नै उद्देशे कह्यो इम यावत तमा पृथ्वी नां नारका इति शब्दार्थः । हिवं भावार्थ कहै छ-जिम रत्नप्रभा नी वक्तव्यता कही तिम सक्करप्रभा आदि नै विष पिण, णवरं एतलो विशेष-रत्नप्रभा थकी नीकली जघन्य पृथक मास स्थितिक ने विषे ऊपजै । अनै सक्करप्रभादिक जाव छठी थी नीकली ३५. नवरं-जहण्णेणं वासपुहुत्तट्टितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु। ३६. योगाहणा-लेस्सा-नाण-द्विती-अणुबंध - संवेह-नाणत्तं च जाणेज्जा ३७. जहेव तिरिक्खजोणियउद्देसए । एवं जाव तमापुढविनेरइए। (श० २४१२९६) १. देखें परि. २, यंत्र १०६-११. *लय : म्हारी सासूजी रे पांच पुत्र काइ १६६ भगगती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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