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________________ ४९. सा चेव ओहिया वत्तब्वया, नवरं-- ५०. ठिती जहणेणं तिण्णि पलिओवमाई, उक्कोसेण वि तिण्णि पलिओवमाइं । एवं अणुबंधो वि। ५१. सेसं तं चेव । एवं पच्छिमा तिण्णि गमगा नेयन्वा, नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा ७-९ । वा०- सप्तमादिगमेषत्कृष्टव त्रिपल्योपमलक्षणा तिरश्च: स्थितिः, ज्योतिष्कस्य तु सप्तमे द्विविधा प्रतीतव, अष्टमे पल्योपमाष्टभागरूपा, नवमे सातिरेकपल्योपमरूपा, संवेधश्चैतदनुसारेण कार्यः (वृ०प०६४८) ४९. सर्व ही वक्तव्यता तसू रे, ओधिक गम जिम लेख। कहिवो तिपहिज रीत संरे, णवरं इतरो विशेख ।। ५०. स्थिती युगल तिर्यंच नी रे, जघन्य अनै उत्कृष्ट । __तीन पल्योपम जाणवी रे, अनुबन्ध पिण इम इष्ट ।। ५१. शेष तिमज कहिवो सहू रे एम चरम गम तीन । णवरं संवेध जाणवू रे, उपयोगे करि चीन ॥ वा०-सातमा, आठमा, नवमा गमा नै विषे उत्कृष्ट ईज तीन पल्योपम युगलिया तिर्यच नी स्थिति । अनै जोतिषी नै विषे ऊपजै, तिहां जोतिषी नीं स्थिति उत्कृष्ट-ओधिक ए सातमा गमा नै विषे दोय प्रकार नी प्रसिद्ध ईज । ते जघन्य तो पल्य ना आठमा भाग नी, उत्कृष्टी एक पल्योपम नै लक्ष वर्ष नीज हुवै । अन आठमा गमा नै विषे जघन्य-उत्कृष्ट पल्योपम ना अष्टमा भाग ने विषे ऊपज । अन नवमा गमा नै विषे जघन्य-उत्कृष्ट पल्योपम लक्ष वर्ष अधिक स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै कायसंवेध विचारी करिवू । सातमे गमे संवेध जघन्य थी ३ पल्प नै पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट अद्धा ४ पल्य नै लक्ष वर्ष । तीन पल्य तो युगलिया तियंच रो, एक पल्य नै लक्ष वर्ष जोतिषी नों। अष्टमे गमे संवेध जघन्य अनै उत्कृष्ट अढा तीन पल्य अन पल्योपम नों आठमों भाग अने नवमे गमे संवेध जघन्य-उत्कृष्ट अद्धा ४ पल्य नै लक्ष वर्ष । न्याय पूर्ववत । ५२. एवं सप्त गमा कह्या रे, पहिला तीन पिछान । छेहला तीन गमा कह्या रे, मध्यम इक त्रिण स्थान । -प्रथम तीन गमा अनै बिचला तीन गमा रै स्थानके एक गमो छहला तीन गमा ए जोतिषी नै विषे तिथंच युगलियो ऊपज तेहना ६ गमा नों अधिकार कह्यो। ___ज्योतिषी में संख्याता वर्ष नों सन्नी तियंच पंचेंद्रिय ऊपज, तेहनों मधिकार' ५३. जो संख्यात वर्षायु सन्नी रे, पंचद्री तिरि ताहि । तेह थको जे ऊपजै रे, देव जोतिषि मांहि ।। ५४. संख्यात वर्षायू तिरो रे, जिमहिज असुर विषेह । ऊपजता नां आखिया रे, तिमज गमा नव एह ।। ५५. णवरं स्थिति जोतिषि तणी रे, तथा संवेध पिछाण। . उपयोगे करि जाणवू रे, शेष तिमज सहु आण ।। वा०-संख्याता वर्षायु सन्नी पंचेंद्रिय तिर्यंच जोतिषी नै विषे ऊपजता प्रथमे, चउथे, सातमे गमे जघन्य पल्योपम नां आठमा भाग स्थितिक ने विषे ऊपज, उत्कृष्ट पल्योपम लक्ष वर्ष अधिक स्थितिक नै विषे ऊपज । अनै दूजे, पांचमे, आठमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट पल्योपम ना आठमा भाग स्थितिक नै विषे ऊपज । अन तीजे, छठे नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट पल्योपम लक्ष वर्ष अधिक स्थितिक नै विषे ऊपज । ५२. एते सत्त गमगा। (श० २४१३२९) वा०-'एते सत्त गम' त्ति प्रथमास्त्रयः मध्यमत्रयस्थाने एकः पश्चिमास्तू त्रय एवेत्येवं सप्त । (वृ०५०८४८) ५३. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदिय ? ५४. संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्ज माणाणं तहेव नव वि गमा भाणियव्वा, ५५. नवरं-- जोतिसिय-ठिति संवेहं च जाणेज्जा । सेसं तहेव निरवसेसं १-९। (श० २४१३३०) *लय : राम पूछ सुग्रीव नै रे १. देखें परि. २, यंत्र १४७ १८८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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