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९३. एस चेव वत्तब्वया जहा पुढविक्काइयउद्देसए
९४. भवग्गहणाई नवसु वि गमएसु अट्ठ जाव
९५. कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहत्त
मम्भहियं,
९३. एहिज वक्तव्यता तसु, जिम पृथ्वी में उद्देसो जी काइ।
पृथ्वी विषे जे ज्योतिषी, ऊपजता ने कहेसो जी काइ।। ९४. तिमहिज कहि छै इहां, नव ही गमा विषेहो जी कांइ।
उत्कृष्टा अठ भव करै, यावत काल कहेहो जी कांइ ।। ९५. काल आश्रयी जघन्य थी, बे भव आश्रयी ताह्यो जी काइ। भाग अष्टमो पल्य तणों, अन्तर्महत अधिकायो जी कांइ ।।
सोरठा ९६. पल्य नों अष्टम भाग, तेह जोतिषी आश्रयी।
अंतर्मुहुर्त माग, तिरि पंचेंद्रिय आश्रयी ।। ९७. *उत्कृष्ट अद्धा पल्य चिउ, पूर्व कोड़ज च्यारो जी कांइ ।
वर्ष लक्ष चिउं अधिक ही, ए गति-आगतिकारो जी कांइ ।।
९७. उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई चउहि पुन्वकोडीहिं
चउहि य वाससयसहस्सेहिं अब्भहियाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ।
१९. एवं नवसु वि गमएसु, नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा १-९ ।
(श० २४१२९०)
सोरठा ९८. चिउंपल्य चिउं लक्ष वास,
शशी चिउं भव में जेष्ठ स्थिति ।। कोड़ पूर्व चिउं जास, तिरि पंचेंद्रिय चिउं भवे ।। ९९. *इम नव ही गमका विषे,णवरं स्थिति में फेरो जी काइ।
फेर संवेध विषे वली, उपयोगे करि हेरो जी काइ।
वा०–प्रथम तीन गमे जोतिषी नी स्थिति जघन्य पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट १ पल्योपम लक्ष वर्ष अधिक । ए ओधिक मध्यम तीन गमे जोतिषी नीं स्थिति जघन्यईज कहिवी । ते पल्य नों आठमों भाग छहले तीन गमे जोतिषी नी स्थिति उत्कृष्टहीज कहिवी--ते एक पल्य नै लक्ष वर्ष ।
सोरठा १००. दूजे गमे संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों।
अंतर्मुहर्त लेह, जघन्य अद्धा बे भव तणों ।। १०१. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे।
चिउं पल्य चिउं लक्ष वास, अंतर्मुहर्त चिउ वली ।। १०२. तीजे गमे संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों।
पूर्व कोड़ स्थिति लेह, जघन्य अद्धा बे भव तणों। १०३. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवे उत्कृष्ट अद्ध ।
चिउं पल्य चिउं लक्ष वास, च्यार कोड़ पूर्व वली ।। १०४. तुर्य गमे संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों।
अंतर्महत लेह, बे भव आश्रयी जघन्य अद्ध ।। १०५. उत्कृष्ट अद्धा धार, अर्द्ध पल्य चिउं भव जोतिषी।
पूर्व कोडज च्यार, उत्कृष्ट अद्धा अठ भवे ।। १०६. पंचम गम संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों।
अंतर्मुहुर्त लेह, जघन्य अद्धा बे भव तणों ।।
*लय : कुशल देश देश सुहामणों
१५८ भगवती जोड़
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