SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ ज्योतिषी में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमाः २० द्वार नी राख्या उपपात टार संपयन द्वार अवगाहना द्वार मंडाणटार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानदार योगद्वार उपयोग द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट ५ १२.३ ओधिक नै ओधिक | अधपाव पल्य ओधिक नै जघन्य अघपाव पल्य ओधिक नै उत्कृष्ट १पल्य१लाख वर्ष १पल्य१लाख वर्ष अपपाव पल्य १पल्य १ लाख वर्ष संख्याता ऊपजै पृथक आगुल ५सी धनुष्य भजना अपधावपल्य संख्याता जघन्य नै औधिक जघन्य जघन्य जपन्य नै उत्कृष्ट १पल्य १ लाख वर्ष अधपाद पल्य १पल्य १ लाख वर्ष रूप पृथक आंगुल पृथक आंगुल भजना १पल्यलाय वर्ष उत्कृष्ट नै ओधिक अधपाद पल्य १पल्य १ लाख वर्ष - १२.३ | उत्कृष्ट जपन्य | अधपाव पल्य अधपावपल्य ऊपजे उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १पल्य १ लाख वर्ष |पल्य १ लाख वर्ष संख्याता ऊपजे धनुष्य ५सी धनुष्य बजाना १. प्रथम दो देवलोक में ४-४ ठिकानां ना ऊपजै - तिथंच युगलियो १. संख्याता वर्ष ना सन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय २. मनुष्य युगलियो ३. संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ४. तीसरे से आठवें देवलोक तक २-२ ठिकाना ना ऊपजे-संख्याता वर्ष ना सन्नी तिथंच पंचेंद्रिय १. संख्याता वर्ष ना सन्नी मनुष्य २. नौये देवलोक से सर्वार्थसिद्ध तक १-१ ठिकानां ना ऊपज-संख्याता वर्ष ना सम्नी मनुष्ण। १४६ पहले देवलोक में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (9) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार | उपयोग द्वार उपपात द्वार जघन्य । अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट १ २ ओधिक ओपिक ओधिक नै जयन्य १पल्य । ३पल्य १२.३ संख्याता ऊपजै नाराच गाड समचौरंस पहली नियमा ओधिक नै उत्कृष्ट ३पल्य ३पल्य १२.३ संख्याता ऊपजे पृथक धनुष्य २सम्यक गिध्या कपमनाराच गाऊ समचौरंश पहली नियमा नियमा जघन्य नै औधिक १पल्य १२.३ २गाक २राग्यक संख्याता ऊपजै पृथक धनुष्य अपम नाराच समचौरंस पहली नियमा नियमा xगमा टूटा |xगमा टूटा १पल्य ૧૨૩ संख्याता सम्यक उत्कृष्ट नै औधिक उत्कृष्ट न जपन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३पल्य १पल्य उपल्य प्राम नाराय गाऊ समचौरस नियमा नियमा ३पल्य १५० दूजै देवलोक में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २०द्वार नी संख्या उपपातद्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार । लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार । जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ३ १ |पल्य संख्याता पृथक ओधिक नै औधिक १पल्य जाझो १२.३ ओधिक जघन्य १पल्य जाझो १पत्य जाझो। ऊपजै ऋषभ नाराच रामचौरंस पहली मिथ्या नियमा नियमा ओधिक नै उत्कृष्ट | ३पल्य पृथक १२.३ ऊपजे सम्यक मिध्या प्रामनाराय समचौरस पहली नियमा ४ जघन्य ओधिक १पल्य जाझो १पल्य जाझो संख्याता पृथक २ सम्यक १२.३ ऊपजे ऋषम नाराध गाऊ जाझी समचौरंस पहली नियमा नियमा ५xगमा टूटा ६xगगा टूटा २सम्यक उत्कृष्ट नै ओधिक | १पल्य जाझो | ३पल्य १२.३ उत्कृष्ट जपन्य | १चल्य जाझो | पल्य जाझो | ऊपजे | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३पल्य ३पल्य पृथक धनुष्य ऋषभ नाराब पहली नियमा नियमा ३३० भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy