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९५. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७।
(श० २४११०२)
९६,९७. सो चेव जहण्णकालद्वितीएसु उववण्णो, सच्चेव
सत्तमगमगवत्तन्वया, नवरं
९५. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। उत्कृष्ट नैं ओधिक गमक ए, दाख्यो सप्तम दयालो ।।
उत्कृष्ट नैं जघन्य (5) ९६. तेहिज पजत्त संख्यात वर्षापु सन्नी मनु,
उत्कृष्ट स्थितिक जेहो ।। रत्नप्रभा में जघन्य स्थितिके,
ऊपजवा जोग्य नारकी विषेहो ।। ९७. ते जघन्य काल स्थितिक विषे ऊपनों, वक्तव्यता सहु तेही ।
सातमा गमक सरीखी कहीवी, णवरं विशेष छै एही ।। ९५. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, पूर्व कोड़ पिछाणी।
वर्ष सहस्र दश अधिक कहीज, बिहुं भव अद्धा जाणी।।
९८. कालादेसेणं जहण्णेणं पुवकोडी दसहि वाससहस्सेहि
अब्भहिया ।
१००. उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चत्तालीसाए
वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ। १०१. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ।
(श० २४११०३)
१०२,१०३. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु
सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया, नवरं
उववण्णो ,
सोरठा ९९. पूर्व कोड़ सुपेख, मनुष्य तणी उत्कृष्ट स्थिति ।
वर्ष सहस्र दश देख, जघन्यायु नारकि तणों।। १००. *उत्कृष्ट पूर्व कोड़ चिउं ए, नर भव चिउं स्थिति जिष्टं ।
चालीस सहस्र वर्ष नारकि नां, चिउं भव आयु कनिष्ठं ।। १०१. एतलो काल सेवे ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। उत्कृष्ट ने वलि जघन्य गमक ए, दाख्यो अष्टम दयालो ।।
___ उत्कृष्ट उत्कृष्ट (E) १०२. तेहिज पजत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु,
उत्कृष्ट स्थितिक जेहो। रत्नप्रभा मे उत्कृष्ट स्थितिके,
उपजवा जोग्य नारकी विषेहो । १०३. ते उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे,
ऊपनों वक्तव्यता सहु तेही। सातमा गमक सरीखी कहिवी, णवरं विशेष छै एही ।। १०४. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, कहिये सागर एको। पूर्व कोड़ी अधिक कहीजे, बिहुं भव अद्धा लेखो।
सोरठा १०५. सागर एक सुजोड़, रत्नप्रभा नारकि स्थिति ।
मनु भव पूर्व कोड़, बिहुं भव अद्धा एतलो ।। १०६. *उत्कृष्ट अद्धा चार सागर नों, अधिक पूर्व कोड़ च्यारो। आठ भवां नों काल कह्यो ए, हिव तसु न्याय उदारो।।
सोरठा १०७. नारकि चिउं भव जाण, च्यार सागर उत्कृष्ट स्थिति।
च्यार मनुष्य भव माण, पूर्व कोड़ चिउं जेष्ठ स्थिति ।।
१०४. कालादेसेणं जहणेणं सागरोवमं
अब्भहियं ।
पुवकोडीए
१०६. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहि पुत्वकोडीहि
अन्भहियाई।
*लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो
श० २४, उ०१, ढा०४१५ ४३
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