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उत्कृष्ट में अधिक (७)
८२. पज्जत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, उत्कृष्ट स्थितिक जेहो । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा में नारकी ने विषे तेहो || ८३. जाव तेहिज धुर गमो जाणवू, णवरं इतरो विशेखो । उत्कृष्ट गमे ए तीन णाणत्ता, जुआ-जुआ इम लेखो ।। ८४. तनु अवगाहन जपन्य थकी जे धनुष्य पंच सय जाणी । उत्कृष्टी पिन धनुष्य पंच सय, प्रथम णाणत्तो माणी ।।
वा० - जघन्य उत्कृष्ट ५०० धनुष्य नीं अवगाहना अने उत्कृष्ट कोड़ पूर्व नीं स्थिति वालो बावनो हुवै तेहनों कथन न लेखव्यो । इहां बहुलपक्षे धोक-मारग' में उत्कृष्ट कोड़ पूर्व नीं ५०० धनुष्य नीं अवगाहणा कही । रत्नप्रभा में उत्कृष्ट गमे संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै अनैं और ठिकाणे संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै, उत्कृष्ट गमे एहीज न्याय जाणवो ।
सोरठा
८५. प्रथम गमे अवगाह, जघन्य पृथक आंगुल उत्कृष्टी कहिवाह, पूर्व कोड़ पूर्व कोड़ तभी ८६. इहां उत्कृष्ट गमेह, जघन्य अनै उत्कृष्ट धनुष्य पंच सय लेह, आखी छै
८७. पृथक आंगुल पेख,
उत्कृष्ट गमा ते माटै इम देख, अवगाहना घुर ८८. *स्थिति जघन्य थी पूर्व कोड़ नीं, उत्कृष्ट पिण पुव्व कोड़ी । द्वितीय णाणत्तो स्थित तणों ए, अनुबंध पिण इम जोड़ी ||
सोरठा
८९. प्रथम गमा रे मांय, पृथक मास नीं जघन्य उत्कृष्ट कहिवाय, पूर्व कोड़ तणी ९०. पृथक मास पिछाण उत्कृष्ट गमा विषे
स्थिति तिहां ॥ नथी ।
नुं ॥
तेनुं ।।
ते माटै ए जाण, द्वितीय णाणत्तो स्थिति ९१. आयु जिम अनुबंध, तृतीय णाणतो उत्कृष्ट गमे सुसंध, तीन णाणत्ता इह विधे || ९२. *काल आश्रयी जघन्य थकी जे, पूर्व कोड़ पिछाणी । वर्ष सहस्र दश अधिक कहीजे, विहं भव अद्धा जाणी ||
तणी । तिहां ॥
फुन । अवगाहना || विषे नथी । णाणत्तो ॥
सोरठा ९३. पूर्व कोड़ पिछाण, मनुष्य भवे उत्कृष्ट स्थिति । वर्ष सहस्र दश जाण, जघन्य स्थिति नारक तणी ।। ९४. * उत्कृष्ट च्यार सागर नारकी में,
चिरं भव स्थिति उत्कृष्ट पूर्व कोड़ चिरं मनुष्य विषे ए, च्यार भवे स्थिति जिष्टं ॥
* लय राजा राघव रायां रो राय कहायो
१. उत्सर्ग मार्ग, सामान्य मार्ग
४२ भगवती जोड़
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८२,८३. सोवेव अपणा उनकोशकालद्वितीयो जाओ, सो चेव पढमगमओ नेयव्बो, नवरं
६४. सरीरोगाणा जम्मेणं पंचधपुयाई, उनको वि पंचवाई।
पठिती जहणेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी । एवं अणुबंधो वि।
९२. कालादेसेणं जहणेणं पुव्वकोडी दर्साह वाससहस्से हि अन्भहिया ।
९४. उनको चत्तारि सावशेषमा उहि पुव्यकोडीह अम्मरयाई ।
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