________________
७७. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं अंतोमुहत्तेहिं
अब्भहियाई, ७८. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ४॥
(श० २४१६७)
वा०-'सो चेव जघनकाले' त्यादिस्तु सज्ञिविषये पञ्चमो गमः ५,
(वृ०प०८१२) ७९. सो चेव जहण्णकाल द्वितीएसु उववष्णो जहण्णेणं
दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सद्वितीएसु उववज्जेज्जा। (श ० २४।६८)
सोरठा ७६. बे भव काल जघन्य, वर्ष सहस्र दश नरक स्थिति ।
सन्नी तिरि भव जन्य, अंतर्मुहूर्त ए अद्धा ।। ७७. “उत्कृष्ट सागर च्यार कहीजै, नारक चिउं भव कालो ।
अंतर्मुहूर्त च्यार अधिक फुन, तिर्यंच चिउं भव न्हालो ।। ७८. काल एतलो सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। जघन्य अनें ओधिक गमक ए, दाख्यो तुर्य दयालो ।।
जघन्य नै जघन्य [५] वा० -जघन्य अनै जघन्य ते सन्नी तियंच नी जघन्य स्थिति अन नारकी ने विषे जघन्य स्थितिपणे ऊपनों- ए पंचम गमक कहै छ--- ७९. तेहिज जघन्य स्थितिक पजत्त संख वर्षायुष,
___ सन्नो पंचेंद्रो तिरि जेहो । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा में,
जघन्य स्थितिक नेरइयापणेहो।। ५०. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै ?
जिन कहै जघन्य विमासो । ऊपजै दश सहस्र वर्ष स्थितिक में,
उत्कृष्ट पिण दश सहस्र वासो।। ८१. प्रभु! एक समय ते किता ऊपजै ? इत्यादिक अवधारो।
तुर्य गमक जिम एहनों आख्यो, भणवो तिमहिज सारो॥ १२. यावत अद्धा आश्रयी जघन्य थी, वर्ष सहस्र दश जेहो।
अंतमहत अधिक कहीजै, वे भव अद्धा एहो ।। ५३. उत्कृष्ट चालीस वर्ष सहस्र ए, नारक चिउं भव न्हालो ।
अंतर्महर्त च्यार अधिक ए, तिर्यंच चिउं भव कालो। ८४. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। जघन्य अने वलि जघन्य गमो ए, दाख्यो पंचम दयालो ।।
जघन्य नै उत्कृष्ट [६] वा.हिवं जघन्य अने उत्कृष्ट ते सन्नी तिथंच नों तो जघन्य आयु अनै उत्कृष्ट आयु नेरइयापण ऊपनों--ए छठो गमक कहै छै--
८१. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति?
एवं सो चेव चउत्थो गमयो निरवसेसो भाणियव्वो ८२. जाव कालादेसेणं जहण्णेणं दसवासहस्साई अंतो
मुहुत्तमब्भहियाई, ८३. उक्कोसेणं चत्तालीसं वाससहस्साई चउहि अंतो
मुहुत्तेहिं अब्भहियाई, ५४. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ५!
(श २४।६९)
वा०-इह च 'सो चेव' त्ति स एव सज्ञी जघन्यस्थितिकः, 'सो चेव उक्कोसे त्यादिस्तु षष्ठ: ६,
(वृ०प०८११) ८५,८६. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववण्णो जहण्णेणं
सागरोवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि सागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा।
(श० २४१७०)
८५. ते हिज जघन्य स्थितिक पजत्त संख वर्षायूष
सन्नी पंचेंद्री तिरि जेहो । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा में,
__ स्थिति उत्कृष्ट नेरइयापणेहो । ८६. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै?
जिन भाखै तसु लेखो। जघन्य सागर स्थितिक विषे ऊपजै,
उत्कृष्ट पिण सागर एको ।
*लय: पर नारी नों संग न कीज
२४ भगवती जोड़
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org