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________________ जो तिथंच थकी ऊपजे तो स्यूं एकेंद्रिय तिर्यंच थकी ऊपजै ? 'एवं जहा वक्कंतीए' इम जिम पन्नवणा नां व्युतक्रांत छठा पद (सू० ८२-८५) नै विषे उपपात का तिम कहिवू । पृथ्वीकाय नै विषे उपपात पन्नवणा नां छठा पद नै विषे कह्यो ते भलायो। तिम इहां पिण बेइन्द्रिय विषे उपपात छठा पद (सू० ८६) नै विषे कह्यो ते जाणवो। छठा पद नै विषे पृथ्वी में देवता ऊपज इम कह्य। अन बेइन्द्रिय नै विषे देव न ऊपज इम छठ पद कह्य । ते मार्ट इहां जाव शब्द में विरोध नथी।' (ज०स०) ९३. पृथ्वीकायिक जीव ने, पृथ्वीकाय विषेहो जी। -- ऊपजता ने लब्धि जे, पूर्वे भाखी जेहो जी॥ ९४. बेइन्द्रिय नै विषे जिका, पृथ्वीकायिक ताह्यो जी। ऊपजता में बोल नीं, लब्धि सर्व ही पायो जी ।। ९५. यावत धुर गम काल थी, जघन्य अंतर्महर्त दोयो जी। उत्कृष्ट अद्धा भव संख्या, इतो काल गतागति होयो जी ।। ९३. सच्चेव पुढविकाइयस्स लद्धी ९५. जाव कालादेसेणं जहण्णणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेज्जाई भवग्गहणाई-एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। ९६. एवं तेसु चेव चउसु गमएसु संवेहो, ९७. सेसेसु, पंचसु तहेव अट्ठ भवा। ९६. इम धुर द्वितीय गमा विषे, तुर्य पंचमे संवेहो जी। जघन्य बे अंतर्मुहुर्त ही, उत्कृष्ट काल संखेहो जी ।। ९७. शेष तीजो छठो सातमो, अष्टम नवम संवेहो जी। _ तिमज जघन्य भव दोय छै, उत्कृष्ट भव अठ लेहो जी ।। सोरठा ९८. तोजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहर्त जेह, बार वर्ष बेइंद्रिय ।। ९९. उत्कृष्ट काल विमास, आठ भवां नों इह विधे। सहस्र अठ्यासी वास, वर्ष अष्ट चालीस फुन ।। १००. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहुर्त जेह, द्वादश वर्षज द्वीन्द्रिये ॥ १०१. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। अंतर्महत च्यार, वर्ष अष्टचालीस फुन ।। १०२. सप्तम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र बावीस, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन । १०३. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे। सहस्र अठ्यासी वास, वर्ष अष्ट चालीस फुन ।। १०४. अष्टम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र बावीस, अंतर्मुहुर्त अधिक ही। १०५. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे। सहस्र अठ्यासी वास, अंतर्महत अधिक चिहं ।। १०६. नवमे गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र बावीस, वर्ष बारै अधिक वली ।। *लय : धर्म दलाली चित्त कर १२६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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