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________________ ८१. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतमहत अधिक फून । ८२. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे । __ असी हजारज वास, ए तृतीय गमा तुल्य सप्तमो ।। ८३, अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहुर्त अधिक फुन । ८४. उत्कृष्ट अठ भव धार, वर्ष सहस्र चालीस जे । अंतर्मुहर्त च्यार, षष्ठम तुल्य सम अष्टमो।। ८५. नवम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वोस सहस्र बरसेह, बिहुं भव नी उत्कृष्ट स्थिति ।। ५६. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवे उत्कृष्ट स्थिति । असी सहस्र जे वास, इक-इक भव दश सहस्र वर्ष ।। ८७. जे षटवीस ठिकाण, तेहथी वनस्पति विषे । ऊपजता ने जाण, पुढवी नीं पर णाणत्ता ।। ५८. *सेवं भंते ! स्वाम जी, शत चउवीसम जाणी जी। सोलम उद्देशक तणों, वारु रीत बखाणी जी ।। चतुविशतितमशते षोडशोद्देशकार्थः ॥२४॥१६॥ ८५,८६. नवमे तु जघन्यतो विंशतिवर्षसहस्राणि उत्कर्षतस्त्वशीतिरिति । (वृ०५०८३३) ८८. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० २४।२२९) ___सोरठा ८९. अप्प वणस्सइ मझार, उपजै स्थान छवीस नों। तास णाणत्ता धार, पृथ्वी नीं पर जाणजो॥ ९०. तेक वाऊ माय, उपजै द्वादश स्थान नों। तास णाणत्ता पाय, पुढवी नी पर जाणवा ।। बेइन्द्रिय में १२ ठिकाणां ना ऊपज, तेहनों अधिकार' ११. 'बेइन्दिया भगवंत जी! किहां थकी ऊपजतो जी? इत्यादिक यावत वलि, पूछ गोयम संतो जी॥ ९२. पुढवीकायिक हे प्रभु! बेइन्द्रिय नै विषेहो जी। जे ऊपजवा जोग्य छै, ते कितै काल स्थितिक ऊपजेहो जी? वा०-'बेइंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जंति ? जाव पुढवीकाइए णं भंते ! जे भविए बेइंदिएसु उववज्जित्तए इत्यादिक इहां पूछयो-बेइन्द्रिय भगवान ! किहां थकी ऊपज ? पछै जाव पुढवीकाइए णं भंते ! जे भविए इति । इहां जाव शब्द में किसा पाठ आया ? उत्तर-जे पृथ्वीकाय नै विषे ऊपज तेहनी पूछा । उत्तर नां पाठ कहिवा। जब कोई पूछ पृथ्वी नै विषे देवता पिण ऊपज छ अनं बेइन्द्रिय नै विषे देवता ऊपजता नथी तो ए पृथ्वी में ऊपज जे पाठ जाव शब्द में इहां किम आव ? तेहनों उत्तर-पृथ्वीकाय नां प्रश्नोत्तर में इम कह्यो-पृथ्वीकाय भगवान किहां थकी ऊपज ? स्यूं नारकी थकी ऊपज, के तियंच, मनुष्य, देव थकी ऊपजै? गोतम ! नारक थकी न ऊपजै । तियंच, मनुष्य, देव थकी ऊपजै, ९१. बेंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति ? जाव (श० २४१२३०) ९२. पुढविक्काइए णं भंते ! जे भविए बेंदिएसु उव वज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? राणा *लय : धर्म दलाली चित करें १. देखें परि. २, यन्त्र ६२-७३ श० २४, उ० १७, ढा० ४२४ १२५ For Private & Personal Use Only Jain Education Intemational www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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