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________________ १५५ तीजे चौथे पांचवें देवलोक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (७) १ उपपात द्वार गमा तीसरे में । | चौथेमे पांचवे में परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाणद्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार शान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग द्वार उत्कृष्ट | सा. १० सा. - १२.३ ३भजना- ३ ७सागर२सा. जा २ सागर २सा. जा ४सागर ७सा. जा ७सा जा. २सा जा. साजा. संखया असंख तीजे चौथे आंगुलों देवलोक में | असंख 1५ संधवणी पजे] भाग योजन १० सा. सा. २सम्यक नियमा २नियमा EE 555 ऊपजे संखया असंख ऊपजे । देवलोक में ५संघवनी ऊपजे पृथक धनुष्य २सा जा ७सा जा. १० सा. १२.३ ३मजना ३भजना FEE ७सा. २सा. सा. जा ७सा, साजा संखया असंख उप आंगुलनों असंख १हजार योजन सा.जा. १५६ छठे सूं आठवें देवलोक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (८) गमा उपपात द्वार आठवें में परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जयन्य | उत्कृष्ट संघयण द्वार अवगाहना द्वार नादार | सठाण द्वार | लेण्या द्वार । दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार छठे मे सातवें में जपन्य | उत्कृष्ट जघन्य उपयोगहार १.सा. १२.३ भजना ३मजना ११० सागर १४ सागर | १४ सागर २० सागर 40 सागर १४ सागर ३४ सागर १४ सागर सागर १७ सागर | १७ सा. सागर " सागर | छते देवलोक में५ संघयणी उपजै हजार योजन असंख ऊपजे | आंगुलनों असंय भाग आंदुलना पृथक २सम्यक नियमा २नियमा ४० सागर ४ सागर ५ सागर सागर सागर १४ सागर १४सागर सागर सागर अपने असंख | ४सागर "सागर सातवें आंठवें देवलोक में संघदनी ऊपजै भाग संखया भजना ३भजना 10 सागर |१४ सागर ६० सागर | सागर १४ सागर १४ सागर सागर १४ सागर ७ सागर । सागसा १४ सागर १७ सा. १४ सागर १८ सा. सा. १२.३ अपज सा. आंगुलनों असंख योजन ऊपजै भाग ३३६ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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