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१६२. जेष्ठ स्थितिक मनु जंत, अवगाहन जघन्योत्कृष्ट ।
धनुष पंच सय हुंत, आयु अनुबंध कोड़ पुव ।। १६३. सव्वदसिद्ध रै मांय, ऊपजतां सन्नी मनुष्य ।
गमा तीनज पाय, टूटै शेषज षट गमा ।। १६४. वैमानिक रै मांय, ऊपजतां ने णाणत्ता।
इक सय त्राणं पाय, बे सय गुणती गमक सहु ।। १६५. सत्तवीस छै स्थान, इक-इक स्थानक नां वलि ।
नव-नव गमका जान, बे सय तयांलीस इम ।। १६६. सौधर्म नैं ईशाण, ऊपजतां तिरि मनु युगल ।
सात-सात गम जाण, बे-बे तूटा अष्ट इम ।। १६७. सव्वट्ठसिद्ध रै मांहि, मनु ऊपजतां त्रिण गमा।
तूटा षट गम ताहि, इम तूटा चवदै गमा ।। १६८. शेष रह्या ए सोय, बे सय गुणती गमक जे।
न्याय विचारी जोय, निपुण बुद्धि करि एहनों ।। १६९. *ए चउवीसम शतक नां, त्रिण सय इकवीस स्थान जी ।
अष्टवीस सय ऊपरै, गमा निव्यासी जान जी । १७०. संमच्छिम मनु साठ गम, युगल तिरिय मन बार जी।
षट-षट गति आगति सव्वट्ठ, ए तूटा असी च्यार जी ॥ १७१. पृथ्वी प्रमुख मनुष्य में, संमच्छिम मन जंत जी।
तूट तसु षट-षट गमा, साठ गमा इम हुंत जी ।। १७२. धुर बे कल्प रु जोतिषी, युगल तिरिय मनु जंत जी।
तूट तसु चिहुं-चिहुं गमा, द्वादश गम इम हुंत जी ।। १७३. गमनागमने सव्वट्ठसिद्ध, षट-षट गम तूटंत जी।
एवं चउरासी गमा, तूट तसु विरतंत जी ।। १७४. शतक चउवीसम अर्थ थी, आख्यो चउवीसमुद्देश जी ।
उगणीसै तेवीस आसाढ़ विद, तीज भृगुवार विशेष जी।। १७५. ढाल ए च्यार सय ऊपरै, प्रवर बतीसमी पेख जी। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी,
'जय-जश' हरष विशेख जी ।। चतुर्विशतितमशते चतुविशोद्देशकार्थः ॥२४॥२४॥
गीतक छंद १. चउवीसमें शत चरम जिनवर, अर्थ आख्या गुण निला।
पर अर्थ निपुणज गणधरे, जे स्थापिया सूत्रे भला ।। २. तसु बुद्धि पिण बहु गमक करि, विस्तारवा वांछै नहीं। फुन अम्ह जिसा किम कही सके,
गंभीर अर्थ जिके सही ।।
१७४. चतुर्विशतितमशते चविंशतितमः ॥२४॥ समाप्तं च विवरणतश्चतुर्विशतितमं शतम् ॥२४॥
(वृ०प० ८५२)
१,२. चरमजि नवरेन्द्रप्रोदितार्थे परार्थ,
निपुणगणधरेण स्थापितानिन्द्यसूत्रे । विवृतिमिह शते नो कर्तुमिष्टे बुधोऽपि, प्रचुरगमगभीरे किं पुनर्मादृशोऽज्ञः ?॥१॥
*लय: मम करो काया माया
२०८ भगवती जोड़
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