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________________ ५४. जिन कहै संख वर्षायु सन्नी तियंच पंचेंद्री पर्णप्त रे । ते नागकुमार में उपजे पिण नहि उपजे अपर्याप्त रे ओघिक नें ओधिक [१] ५५. पजत संख वर्षायु सन्नी प्रभु ! पंचेंद्रिय तियंच तेह रे । ऊपजवा जोग्य नागकुमार में, कितै काल स्थितिक उपजेह रे ? ५६. श्री जिन भाजयन्य पो, दश सहस्र वर्ष स्थितिकेह रे । उत्कृष्टी देश ऊण जे, दोय पत्थ विषे उपजेह रे ॥ ५७. इम जिम असुरकुमार में वर्ष संख्यायु सन्नी तिर्यंच रे । ऊपजता नीं वारता, इहां पिण तिम नव गम संच रे ॥ ५८. वरं नागकुमार नीं, स्थिति विषे जे फेर रे। , वलि काय संवेध में फेर छै, शेष तिमहिज कहिवूं हेर रे ।। हिवे नव गमे नामकुमार भी स्थिति विये अपने ते क सोरठा सहस्र ५९. प्रथम तुर्य सप्तम, जघन्य उत्कृष्ट स्थिति अवगम, देश ऊण ६०. द्वितीय पंचमे इष्ट, जघन्य अने उत्कृष्ट, वर्ष ६१. तीजे षष्ठम नवम, नाग स्थिति अवगम, ६२. प्रथम मे संदेह, वे वर्ष सहस्र दश लेह, ६३. उत्कृष्ट अद्धा काल, अठ पस्य देवूण व्हाल, ६४. दूजे गमे संवेह, जघन्य भव वर्ष सहस्र दश जेह, ६५. उत्कृष्ट अद्धा धार, थी । अंतर्मुहूर्त अधिक फुन । कहिये अष्टज तणों । कोड पूर्व चि अधिक फुन ।। बिहु भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ।। अष्ट भवे इम आखियो । सहस्र चालीस फुन ॥ भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त्त अधिक ही ॥ पूर्व कोजच्यार वर्ष ६६. तीजे गमे संदेह, बे अधिक ही ॥ देश ऊण पल्य बेह, ६७. उत्कृष्ट अद्धा जोय, अष्ट भवां नों आखियो । आठ पल्प देसूण सोय, पूर्व कोड़ चिडं ६५. तु गमे संवेह, बे भव अद्धा अंतर्मुहूर्त्त लेह, वर्ष सहस्र दश ६९. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों अंतर्मुहूर्त प्यार अष्ट पल्य ७०. पंचम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य अंतर्मुहूर्त लेह, वर्ष सहस्र दश नाग ७२ भगवती जोड़ Jain Education International दश स्थितिक में । विषे ॥ फुन ऊपजे । स्थिति में ॥ बे अष्टम सहस्र दश जघन्य अनें देश ऊण भव अद्धा गम पल्य उत्कृष्ट ही । पय विषे || जघन्य थी । नाग स्थिति ॥ इह विधे । देसूण जे ॥ थी । स्थिति ॥ ५४. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउय, नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय | (१० २४१५२) ५५. पज्जत्तसंखेज्जवासा उयस ष्णिपंचिदियति रिक्खजोगिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? ५६. गोमा ! हमे दस बाससहस्साई उनको देसूणाई' दो पाई। ५७. एवं जहेब असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स वत्तव्वया तहेव इह विवि गमएम, I ३८. नवरं नागकुमार द्विति संवे च जागा सेसं तं चेव १-९ । (१० २४/१५३) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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