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________________ वा० – अवगाहना जघन्य पृथक धनुष्य नीं कही, तेहनुं न्याय - जे सुषम अरा ने विषे साधिक पत्योपम आउखावंत तिर्यंच ऊपनां, ते तिर्यंच में जेहनीं लघु काय छ, तेहनीं अपेक्षाए कह्य ं । उत्कृष्ट साधिक बे गाऊ नीं कहीं, तेह्नों न्याय-जे काल नैं विषे जे मनुष्य नीं अवगाहना साधिक गाऊ नीं हुवै। ते काल नैं विषे ऊपना जे हस्ती प्रमुख तेहनीं अपेक्षाए साधिक बे गाऊ नीं कही । दूज देवलोक में मनुष्य युगलियो ऊपजं, तेहनों अधिकार' ६६. असंख व सन्नी मनुष्य में पिण तिमहीज जी नां स्थिति जिम युगल तिर्यंच नें, आखी छे तिम सलहीज जी ॥ । वाo । · असंख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य ईशान कल्पे ऊपजै, तेहनीं पिण जिम सोध लियो मनुष्य अपने ही पता नहीं तिमहीज कहिवी अनं स्थिति निति लियो ईशाने उपजे तेहनी कहीं तिम कहिवी एतले तियंच युगलिया मैं जे स्थानक नै विषे सौधर्मे ऊपजता थका नै पत्यापम स्थिति कही, तिम तिर्यंच युगलिया ने ते स्थानक नैं विषे ईशाने ऊपजता नैं स्थिति साधिक पत् नी कहिवी एहवं तिथंच नै अधिकारे का छे, तिमहिज युगलिया मनुष्य नै अधिकारे कहिवूं । तेहनीं विधि कहै छे - जे असंख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य मैं जे स्थानक नैं विषे सौधर्मे ऊपजता थका नैं पल्योपम नीं स्थिति कही, तिम युगलिया मनुष्य नैं ते स्थानक नैं विषे ईशान कल्पे ऊपजतां थकां नैं स्थिति साधिक पत्योपम नीं कहिवी । ६७. अवगाहना पिण इह विधे, जे स्थानके गाऊ नीं ख्यात जी । तेह स्थानक नैं विषे इहां, साधिक गाऊ नीं थात जी ॥ - - अवगाहना पिण सौधर्म कल्प में युगलियो मनुष्य ऊपजं, ते अधिकारे जे स्थानक नै विषे असंख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य नीं एक गाऊ नीं अवगाहना कही, ते स्थानक नै विषे ईशान कल्पे युगलियो मनुष्य ऊपजता थकानीं साधिक गाऊ नीं कहिवी । वाo ६८. शेष परिमाणादि जे लद्धी, तिणहीज रीत सोहम्मे युगल मनु ऊपजै, तिमज ईशान ६९. संख वर्षायु सन्नो तिरि, अथवा सन्नी मनु' जाण जी । जिम हिज सौधर्म कल्प में, ऊपजतां ने पिछाण जी ॥ ७०. तिमहिज नव गमका सहु णवरं ईशान विषेह जी । देव तणीं स्थिति जाणवी, वलि जाणवू कायसंवेह जी ॥ वा०-स्थिति जे प्रथम, चोथे, सातमे गमे संख्यात वर्षायु सन्नी तियंच पर्याप्तो सन्नी मनुष्य ईशान कल्पे जघन्य साधिक पत्योपम काल स्थितिक ने विषे ऊपजै, उत्कृष्ट साधिक दोय सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजे । अने १. देखें परि २, यत्र १५३ २. देखें परि २, यंत्र १५१ ३ देखें परि २, यंत्र १५४ कहेह जी । विषेह जी ॥ Jain Education International उगए ओमाहा जहन्नेषं धणुपुहुत्ते" सातिरेकपल्योपमायुषस्तिर्यञ्चः सुषमा वा० ति ये रोद्भवाः क्षुद्रतरकायास्तानपेक्ष्योक्तम्, 'उक्को सेणं साइरेगाई दो गाउयाई' ति एतच्च यत्र काले सातिरेकगव्यूहमाना मनुष्या भवन्ति तत्कालभवान् हस्त्यादीनपेक्ष्योक्त', (बु० ० ८५१) ६६. उपसणमणस्सस्स वि तहेब ठिली जहा पचिदियतिरिक्खजोणियस्स असंखेवासा उयस्स । ६७. ओगाहमा वि जेठा मा तेसु ठा सातिरेग गाउयं । बास गाउयं ति सोधम्मं देवाधिकारे येषु स्थानेध्यसातवर्षायुर्मनुष्याणां मन्यूतमुक्त 'तेसु ठाणेसु इहूं साइरेगं गाउयं' ति जघन्यतः सातिरेकपल्योपमस्वितिकत्वादवदेवस्य प्राप्तव्य देवत्यनुसारेण चासघातवर्षायुर्मनुष्याणां स्थितिसद्भावात् तदनुसारेय च तेषामवगाहनाभावादिति । ( वृ० प० ८५१) ६८. सेसं तहेव । (१० २४,३४७) For Private & Personal Use Only ६९. संखेज्जवासाउयाणं तिरिक्ख जोणियाणं मणुस्साण य जब सोहम्मेसु उववज्जमाणाणं ७०. तहेव निरवसेसं नव वि गमगा, नवरं ईसाणठिति संवेहं च जाणेज्जा । ( श० २४।३४८ ) श० २४, उ० २४, ढा० ४३२ १९९ www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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