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________________ दूजे, पांच में, आठमे गमे जघन्य उत्कृष्ट साधिक पल्योपम काल स्थितिक ने विषे ऊपजे । अने तीजे, षष्ठम, नवम गमे जघन्य उत्कृष्ट साधिक बे सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजे । अनैं कायसंवेध गमे गमे प्रति बिहुं भव नीं स्थिति विचारी कहिं । ७१. सनतकुमार सुर हे प्रभु! कहां थकी अपजेह जी ? इह विधि प्रश्न पूछ छते, श्री जिन उत्तर देह जी ।। ७२. जिम सक्करप्रभा पृथ्वी तणां नेरइया नुं उपपात जी । आथियो तिणहिज रीत सूं इहां कहिवूं अवदात जी ॥ तीजे देवलोक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिथंच ऊपजे, तेह्नों अधिकार' ७३. यावत जे पर्याप्त संख वर्षायु सन्नी तिथंच जी जेह ऊपजवा नैं योग्य प्रभु ! सुर सनतकुमार में संच जी ।। । ७४. शेष परिमाण में आदि दे, कुन भवादेश पर्यंत जी जिम उपजता ने सौधर्म मे तिम सह वार्ता हंत जी ।। ७५. नवरं जे सनतकुमार नीं, स्थिति फुन कायसंवेह जी । उपयोगे करी जाणं, गमे गये प्रति जेह जी ॥ वा० - प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके संख्यात वर्षायु सन्नी तियंच पर्याप्तो सनतकुमार कल्पे जघन्य २ सागर, उत्कृष्ट ७ सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजै । अनं द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघम्योत्कृष्ट २ सागर काल स्थितिक मैं विषे ऊपजे । अने तृतीय, षष्टम नवम गमके जघन्य उत्कृष्ट ७ सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजै । अन काय संवेधं संख्यात वर्षायु सन्नी तिर्यंच अन सनतकुमार देव एहिं अब नी स्थिति विचारी कहियूँ ७६. आपण सन्नी तिरि हुवै, जघन्य काल स्थितिक जिवार जी । तीनूई गमक विषे तदा, कहिवी घुर लेश पंच धार जी ।। वा० जघन्य स्थितिक तिर्यंच सनतकुमार ने विषे ऊपजे तो जघन्य स्थिति सामथ्यं थकी कृष्णादि च्यार लेश्या मांहै अनेरी एक लेश्या नैं विषे परिणत थई मरण समये पद्मलेश्या प्रतं आसादी ने मरे, तिवारे आंगला भव नीं लेश्या परिणाम थयां जीव परभव प्रत जावे । इसो आगम मांहै का छे । तिवारी एहन पंच लेश्या हुवै । ७७. शेष तिमज कहियो सह ए को सन्नी सन्नी मनुष्य की ऊपजे कहिये ते तिर्यच जी। सुसंच जी ॥ तीजे देवलोक में संख्याता वर्ष नों सभी मनुष्य अपने तेहनों अधिकार ७८. जो सन्नी मनुष्य थकी ऊपजै, मनुष्य नैं जिमहिज जाण जी । सक्करप्रभा नारक विषे ऊपजता नै पहिछाण जी ॥ १. देखें परि २, यंत्र १५५ २. देखें परि २, यंत्र १५७ भगवती जोड़ २०० Jain Education International ७१. कुमारदेवा भंते कमोहितो उबवति ? ७२. उववाओ जहा सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं, (२०२४०३४९) पज्जतवासा उपसपिचिदियतिरिक्जोगिए गंमते जे भविए सणकुमारदेव उववजिताए ? ७४. अवसेसा परिमाणादीया भवादेसपज्जवसाणा सच्चेव वत्तब्वया भाणियव्वा जहा सोहम्मे उववज्जमाणस्स, ७५. नवरं सणकुमारट्टिति संवेहूं च जाणेज्जा । ७३. जाव ७६. जाय अप्पा जयकालद्वितीयो भवति ताहे तिसु वि गमएसु पंच लेस्साओ आदिल्लाओ कायव्वाओ । वा० 'पंच लेस्साओ आदिल्लाओ कायव्वाओ' त्ति जयस्थितिस्तिक सनस्कुमारे समुत्पत्यस्थितियामकृष्णादीनां चतसृणां श्यानामन्यतरस्यां परिणतो भूत्वा मरणकाले पद्मलेश्यामासाद्य म्रियते ततस्तत्रोत्पद्यते यतोऽग्रेतनभवलेश्यापरिणामे सति जीवः परभवं गच्छतीत्यागमः, तदेवमस्य पञ्च लेश्या भवन्ति । ( वृ० प० ८५१) ७७. सेसं तं चेव । (१० २४०३५० ) ७८. ज मह उवयकति ? मनुस्सा सक्करप्पभाए उववज्जमाणाणं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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