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१४३. एवं ईसाणदेवे वि। एवं एएणं कमेणं भवसेसा वि
जाव सहस्सारदेवेसु उववाएयव्वा, १४४. नवरं–ओगाहणा जहा ओगाहणसंठाणे (सू०७०)
अवगाहना यथाऽवगाहनासंस्थाने प्रज्ञापनाया एकविंशतितमे पदे
((वृ०प०८४२)
१४५-१४७. भवणवणजोईसोहम्मीसाणे सत्त हुंति रयणीओ। एक्केक्कहाणि सेसे दुदुगे य दुगे चउक्के य ।।
(वृ० प० ८४२)
१४०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों।
__सागर अष्ट उदार, अंतर्मुहूर्त चिउं वली। १४१. नवमे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी।
सुर भव सागर बेह, कोड़ पूर्व पं.-तिरि भवे। १४२. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों ।
सागर अष्ट उदार, कोड़ पूर्व चिउं पं.-तिरि ।।
सौधर्म कल्प नां सुर पंचेंद्रिय तियंच नै विषे ऊपज, तेहनां ९ गमा कहा।
तियंच पंचेंद्रिय में दूसरे देवलोक स्यूं आठवें देवलोक तक नां देव ऊपज, तेहनों अधिकार' १४३. *इम ईशाण सुर ने विषे, इम इण अनुक्रमेहो जी काइ।
शेष जाव अष्टम सुरे, उपजाविवो कहेहो जी कांइ ।। १४४. णवरं जे अवगाहना, इकवीसम पद मांह्यो जी काइ। नाम ओगाहण संठाण में,आख्यो तिम कहिवायो जी कांइ ।।
सोरठा १४५. भवण व्यंतरा जेह, फुन सोहम्म ईशाण सुर।
सप्त हस्त नी देह, उत्कृष्टी अवगाहना ।। १४६. तृतीय तुर्य षट हाथ, ब्रह्म लंतके पंच कर।
सप्तम अष्टम ख्यात, चिउं कर नी अवगाहना ।। १४७. चिउं कल्पे कर तीन, वेयक कर दोय फुन ।
पंच अणुत्तर चीन, एक हस्त अवगाहना ।। १४८. लेश्या कहियै छै हिवै, सनतकुमार मांहिंदो जी काइ ।
ब्रह्म विषे इक पद्म छ, ऊपर शुक्ल कर्थिदो जी कांइ ।। १४९. वेद हिवै कहिये अछ, तृतीय कल्प थी ताह्यो जी काइ।
पुरिस वेद एकज हुवै, इत्थि नपुंस न थायो जी कांइ ।। १५०. आयु में अनुबंध ही, जिम पन्नवणा मांह्यो जी कांइ । स्थिति पद चउथा नैं विषे,
आख्यो तिम कहिवायो जी कांइ ।। १५१. शेष ईशाणक देव ने, जिमहिज ए अधिकारी जी काइ । कायसंवेध फुन जाणवो, सेवं भंते ! सारी जी कांइ ।।
सोरठा १५२. तिरि पंचेंद्रिय माय, गुणचालीसज स्थान नों।
आवै ते कहिवाय, पृथ्वीवत षटवीस जे ।। १५३. सात नारकी सोय, तीजा सू अष्टम लगे।
एह कल्प षट होय, एगुणचाली इम हुई ।। १. देखें परि. २, यंत्र ९८-१०४ *लय : कुशल देश सुहामणों
१४८. लेस्सा सणंकुमार-माहिंद-बंभलोएसु एगा पम्हलेस्सा,
सेसाणं एगा सुक्कलेस्सा। १४९. वेदे नो इत्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नो नपुंसकवेदगा।
१५.. आउ-अणुबंधा जहा ठितिपदे ।
'जहा ठितिपए' त्ति प्रज्ञापनायाश्चतुर्थपदे स्थितिश्च प्रतीतैवेति ।
(वृ० ५० ८४२) १५१. सेसं जहेव ईसाणगाणं कायसंवेहं च जाणेज्जा ।
(. २४१२९३) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० २४१२९४)
श० २४, उ० २०, ढा० ४२८ १६१
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