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सोरठा
मांय, सोहम नां सुर ऊपजै । लबी तिहां कहाय तिमहिज कहियूँ छे दहां ॥
१२३. पृथ्वी कायिक
१२४. *जघन्य थकी भव मे करें, उत्कृष्टा अठ लेहो जी कांइ । स्थिति फन कालादेश में उपयोगे जाणेहो जी कांइ ॥
वा०-स्थिति ते प्रथम तीन गमे सौधर्म देव जघन्य एक पल्य, उत्कृष्ट २ सागर स्थिति अधिक कहिये । मध्यम तीन गमे सौधर्म सुर जघन्य काल स्थितिक थयो ते १ पल्योपम स्थितिवंत कहिये । छेहले तीन गमे सौधर्म सुर उत्कृष्ट काल स्थितिक थयो ते २ सागर स्थितिवंत कहिये ।
सोरठा १२५. पहिले गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य एक पल्योपम जेह, अंतर्मुहुर्त अधिक १२६. उत्कृष्ट अवधार, अद्धा अष्ट सागर अष्ट उदार, पूर्व कोड़ चिउं १२७. द्वितीय गमे संदेह, बे अद्धा
भव
एक पल्योपम जेह, अंतर्मुहूर्त १२८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट
थी ।
फुन ॥
भवां तणों । तिरि भवे ॥
जघन्य थी ।
अधिक हो । तणों ।
भवां
सागर अष्ट उदार, अंतर्मुहूर्त चितं बली ।
१२९. तृतीय गमे संवेह, बे भव
अद्धा
एक पल्योपम जेह, पूर्व कोड़ १३०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट पूर्व कोडज चिठं
सागर अष्ट उदार,
भव अदा
जघन्य
१३१. चये गमे संवेह, बे एक पत्योपम जे अंतर्मुहूर्त अधिक १३२. उत्कृष्ट अवधार
प्रवर पत्योपम प्यार को १३३. पंचम गम संवेह, बे
थी । अधिक फुन ।। अद्धा अष्ट भवां तणों । पूर्व चि अधिक ही ।। भव अद्धा जघन्य थी । एक पल्योपम जेह, अंतर्मुहूर्त अधिक ही ॥ १३४. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भव तणों।
चिउं पल्य सुर भव च्यार, चिडं अंतर्महुतं तिरि ॥ १३५. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी ।
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जघन्य थी ।
कह्य ु वली ।। भवां तणों । तिरि ॥
एक पल्योपम जेह, कोड़ पूर्व फुन अधिक ही ॥ १३६. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों ।
प्रवर पत्योपम प्यार को पूर्व चि अधिक फुन ॥ १३७. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । सुर भव सागर बेह, अंतर्महुतं पं. तिरि ॥ १३८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । सागर अष्ट उदार, च्यार कोड़ पूर्व वली । १३९. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । सुर भव सागर बेह, अंतर्मुहूर्त पं. - तिरि ॥
१६० भगवती जोड़
१२४ नववि गमएस जहणेवं दो भवगणाई उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गणाई । ठिति कालादेसं च जाणेज्जा १-९ ।
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