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१५१. *मन में उपयोगे करी जी, कहिवं
सूत्रे तो आख्यो इतो जी, तसु निर्णय
इम इम
संवेह । लेह ।।
१५१. एवं संवेहो उवजंजिऊण भाणियन्वो १-१।
(श. २४११८१)
सोरठा १५२. छठे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी।
अंतर्मुहुर्त लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।
इहां पृथ्वी नी एक पक्ष उत्कृष्ट स्थिति माट उत्कृष्ट ८ भव । तेहनों कायसंवेध कहै छै१५३. * उत्कृष्टो अद्धा इतो जी, वर्ष अठ्यासी हजार ।
चिउं अंतर्मुहुर्त वलो जी, अष्ट भवे अवधार ।।
सोरठा १५४. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी।
वर्ष सहस्र दश लेह, पृथ्वी अंतर्मुहूर्त स्थिति ॥
इहां वनस्पति नी एक पक्ष उत्कृष्ट स्थिति, ते माट उत्कृष्ट ८ भव ।। तेहनों कायसंवेध कहै छ१५५. उत्कृष्ट अद्धा इष्ट, इक लख वर्ष अठवीस सहस्र।
पृथ्वी चित्रं भव जिष्ट, जेष्ठ वणस्सइ भव चिउं ।। १५६. अष्टम भव संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी।
वर्ष सहस्र दश लेह, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ।।
इहां पिण एक पक्षे वनस्पति नी उत्कृष्ट स्थिति, ते माट उत्कृष्ट अष्ट भव छ । तेहनों काल कहै छै१५७. उत्कृष्ट अद्ध विचार, अष्ट भवां नों इह विधे।
वर्ष चालीस हजार, अंतर्मुहर्त च्यार फुन ।। १५८. नवमे संवेध तास, बे भव अद्धा जघन्य थी।
सहस्र बतीसज वास, वण पुढवी उत्कृष्ट स्थिति ।। __इहां वनस्पति अने पृथ्वी ए बिहुं पक्षे उत्कृष्ट स्थिति माटै उत्कृष्ट आठ भवनों काल कहै छै१५९. उत्कृष्ट अद्धा सोय, अष्ट भवां नों इह विधे ।
इक लक्ष वर्ष सुजोय, वर्ष सहस्र अठवीस फुन ।
अनै पहिले, दूजे, चउथे, पंचमे गमे जघन्य दो भव, उत्कृष्ट असंख्याता भव । तेहनों कायसंवेध कहै छै१६०. चिउं भव शेष संवेह, बे भव अक्षा जघन्य थी।
अंतर्मुहुर्त बेह, उत्कृष्ट भव अद्धा असंख ।।
इहां बिहुं पक्षे जघन्य स्थिति माटै उत्कृष्ट असंख्याता भव नों असंख्यातो काल कायसवेध कह्यो। ए वनस्पति पृथ्वी नै विष ऊपज तेहनों अधिकार कहो।
*लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान
श० २४, उ०१२, ढा०४२० ९१
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