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________________ ३२. धुर गम संवेध जघन्य अद्धा, साधिको पुव्व कोड़ ही। दश सहस्र वर्षज अधिक ही, उत्कृष्ट षट पल्य जोड़ ही ।। ३३. गम द्वितीय साधिक कोड़ पूर्व, दश सहस्र वर्ष जघन्य ही। उत्कृष्ट अद्धा तीन पल्य, दश सहस्र वर्षज अधिक ही ।। ३४. गम तृतीय कायसंवेध अद्धा, जघन्य नै उत्कृष्ट ही । बिहुं भव संबंधी षट पल्योपम, प्रवर न्यायज इम लही ।। ३५. गम तुर्य धुर पुव्व कोड़ साधिक, दश सहस्र वर्ष अधिक ही। उत्कृष्ट बे पुव्व कोड़ साधिक, कायसंवेधे सही ।। ३६. गम पंचमे संवेध कहियै, जघन्य में उत्कृष्ट ही। पुव्व कोड़ साधिक फुन वर्ष दश सहस्र कहियै अधिक ही। ३७. षष्ठम गमे संवेध ते इम, जघन्य नैं उत्कृष्ट ही। पुव्व कोड़ बे साधिक कहीजै, प्रवर जिन वचने लही ।। ३८. गम सप्तमे अद्ध जघन्य त्रिण पल्य, दश सहस्र वर्ष अधिक ही। उत्कृष्ट अद्धा षट पल्योपम, बिहुं भवे ए स्थिति लही ।। ३९. गम अष्टमे संवेध कहिये, जघन्य नै उत्कृष्ट ही। पल्य तीन में फुन सहस्र दश ए, वर्ण कहियै अधिक ही। ४०. गम नवम फुन संवेध छै, इम जघन्य नै उत्कृष्ट ही। बिहुँ भव संबंधी षट पल्योपम, स्वाम वच अति सरस ही ।। सोरठा ४१. जघन्य गमे सुजाण, तीन णाणत्ता तेहनां । अवगाहन नों माण, आयू में अनुबन्ध नों। ४२. जघन्योकृष्ट अवगाह, तसु साधिक धन पांच सौ । स्थिति अनुबन्ध सुलाह, कोड़ पूर्व जामी कही ।। ४३. धुर गम में अवगाह, उत्कृष्ट गाऊ त्रिण तणीं। इहां धनु पंच सयाह, साधिक छै उत्कृष्ट पिण ।। ४४. धुर गम स्थिति अनुबन्ध, उत्कृष्टी त्रिण पल तणीं। इहां उत्कृष्टी संध, साधिक पूर्व कोड़ नी ।। ४५. ते माटै कहिवाय, जघन्य गमे त्रिण णाणत्ता। बिचला त्रिण गम ताय, गमा जघन्य कहीजिये ।। ४६. छेहला त्रिण गमकेह, गम उत्कृष्ट कह्या तसु । ते उत्कृष्ट गमेह, तीन णाणत्ता तेहनां ।। ४७. अवगाहन पहिछाण, जघन्योत्कृष्ट तिण गाउ नीं। आयु अनुबन्ध जाण, तीन पल्य जघन्योत्कृष्ट ।। ४८. अवगाहन पहिछाण, साधिक धन पंच सय जघन्य । इहां जघन्य पिण जाण, त्रिण गाऊ अवगाहना ।। ४९. धुर गम स्थिति अनुबन्ध, साधिक पुव्व कोड़ी जघन्य । इहां जघन्य पिण संध, तीन पल्योपम नी कही ।। ५०. ते माटै इम हेर, धुर गम थी उत्कृष्ट गमे । तीन बोल में फेर, तिणसं ए त्रिण णाणत्ता ।। ६४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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