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________________ सोरठा १३६. धुर गम स्थिति अनुबंध, उत्कृष्ट पूर्व कोड़ त्यां। इहां पृथक वर्ष संध, ते माटै ए णाणत्ता ।। १३७. *शेष ओधिक गमे जिम आख्यो, कहिवो सगलो तेमो। कायसंवेध विचारी भणवं, बुद्धि सं कहिये एमो।। १३७. सेसं जहा ओहियाणं । संवेहो उवजंजिऊण भाणियब्वो (श० २४११०७) १३०,१३९. जघन्यस्थितिक औधिकेम्वित्यत्र गमे संवेधः कालादेशेन जघन्यतः सागरोपमं वर्षपृथक्त्वाधिक उत्कृष्टतस्तु द्वादश सागरोपमाणि वर्षपृथक्स्वचतुष्काधिकानि । (वृ०प०८१७) १४२,१४३. सो चेव अप्पणा उक्कोसकाल द्वितीओ जाओ। तस्स वि तिसु वि गमएसु इमं नाणत्तं सोरठा १३८. तुर्य गमे संवेह, एक उदधि नै पृथक वर्ष । जघन्य काल ए लेह, बिहुं भव अद्धा जघन्य स्थिति ।। १३९. नारक सागर बार, चिहुं मनु भव चिहुं पृथक वर्ष । उत्कृष्ट अद्धा धार, तुर्य गमक न एतलु ।। १४०. इक दधि पृथक वास, जघन्य अद्धा बे भव तणों। उत्कृष्ट काल विमास, च्यार उदधि चिउं पृथक वर्ष ।। १४१. त्रिण दधि पृथक वास, षष्ठम गम अद्धा जघन्य । उत्कृष्ट काल विमास, बार उदधि चिउं पृथक वर्ष ।। उत्कृष्ट नैं ओधिक [७] १४२. *तेहिज पज्जत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, उत्कृष्ट स्थितिक जेहो। ऊपजवा जोग्य सक्करप्रभा में, नारकी नैं विषे तेहो ।। १४३. तेहनां पिण छेहला तीन गमे मनु, उत्कृष्ट आयु जासो। ते तीन गमा विषे एह णाणत्ता, कहियै तीन विमासो ।। १४४. तनु अवगाहन जघन्य थको जे, धनुष्य पंच सय होई। उत्कृष्टी पिण धनुष्य पांच सौ, प्रथम णाणत्तो जोई ।। सोरठा १४५. ओधिक गम अवगाह, जघन्य पृथक कर नीं कही। इहां धनु पंच सयाह, ते माटै ए णाणत्तो। १४६. *स्थिति जघन्य थी कोड़ पूर्व नी, उत्कृष्ट पिण पुव्व कोड़ी। द्वितीय णाणत्तो स्थिति तणों ए, इमहिज अनुबंध जोड़ी । सोरठा १४७. धुर गम स्थिति अनुबंध, जघन्य पृथक वर्ष नीं। इहां कोड पुव्व संध, ते माटै ए णाणत्ता ।। १४८. *शेष प्रथम गमा विषे कह्य छै, तिणहिज रीत कहेवू । णवरं नारकि नी स्थिति अनैं वलि, कायसंवेध जाणे ।। सोरठा १४९. सप्तम गम मनु जाय, जघन्य एक दधि स्थिति विषे। उत्कृष्ट नारकी मांय, ऊपजे त्रिण सागर विषे ।। १४४. सरीरोगाहणा जहण्णेणं पंचधणुसयाई, उक्कोसेण वि पंचधणुसयाई। १४५. शरीरावगाहना पूर्व हस्तपृथक्त्वं धनु शतपञ्चक चोक्ता इह तु धनुःशतपञ्चकमेव । (वृ०प० ८१७) १४६. ठिती जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। एवं अणुबंधो वि। १४८. सेस जहा पढमगमए, नवरं-नेरइयठिई कायसंवेहं च जाणेज्जा ७-९ । *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो ४६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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