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________________ १०७. सप्तम गमे संवेह, बे भव अद्धा तीन दिवस निशि तेह, अंतर्मुहूर्त अधिक पुन । जघन्य थी । वा० - तेऊकाय नी उत्कृष्टी स्थिति अने पृथ्वीकायिक नीं जघन्य स्थिति । तिहां पिण एक पक्ष उत्कृष्टी स्थिति कही ते मार्ट अष्ट भव । वर्ष अष्ट बे भव अद्धा अंतर्मुहूर्त अयासी सहस्र जे । भवां नों आखियो । जघन्य थी । अधिक फुन । वा० - इहां पिग एक पक्ष उत्कृष्टी स्थिति, ते मार्ट अष्ट भव । नों आखियो । च्यार फुन ।। जघन्य थी । बावीस फुन । १०८. उत्कृष्ट अद्धा धार, दिवस रात्रि जे बार, १०९. अष्टम गमे संवेह, तीन दिवस निशि जेह, ११०. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां दिवस-रात्र जे बार, अतर्मुहूर्त्त १११. नवमे गमे संदेह, बे भव अद्धा तीन दिवस निशि जेह, वर्ष सहस्र वा० - अत्र तेऊकाय नीं तीन दिन रात्रि नीं स्थिति अने पृथ्वीकाय नीं बावीस हजार वर्ष नीं स्थिति । इहां बिहुं पक्ष उत्कृष्टी स्थिति छं, ते मार्ट अष्ट भव ग्रहण । ११२. उत्कृष्ट अद्धा धार, दिवस-निशा बलि वर्ष अयासी सहस्र जे। बार, अष्ट भवे अद्धा इतो ।। वा०- ए पंच गमे जघन्य दोय भव, उत्कृष्टा अष्ट भवनों कायसंवेध ह्यो । अशेष १, २, ४, ५ – ए च्यार गमे कायसंवेध कहे छ ११३. शेष चिउ गमकेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुह बेह उत्कृष्ट काल असंख ही ।। बा०-- इहां जघन्य बे भव नों काल बे अंतर्मुहूत्तं । अत्र तेउकाय नीं अनं पृथ्वीकाय पण अंतर्मुहूर्त ए पि जघन्य स्थिति से मार्ट उत्कृष्ट असंख्याता भव । तेहनों असंख्यातो काल कह्यो । 1 पृथ्वीका में बाकाय अपने तेहनों अधिकार' ऊपजे पृथ्वी एवं चैव , ११४. "जो वाकायिक बकी जी, वायुनां पिण नव गमा जी ११५. जिम हिज तेउकाय नों जी, तिमहिज वाऊ महि विषे जी, ११६. नवरं बाऊ न कह्यो जी, पृथ्वी में उपपात । ऊपजतां नें थात ।। पताका नों संस्थान । सुचो कलाप जान । तेऊ नों संठाण छै जी, वा० - इहां तेऊ में समुद्घात ३ पावें । वाऊ में समुद्धात ४ पावं, ते वरं पाठ में खोली नथी । ते वाऊ ओदारिक मूल शरीर नीं अपेक्षाए संभाविये छ । वाऊ में वेक्रिय समुद्घात पावै छै, पिण ते उत्तर रूप मार्ट इहां लेखव्यो न दीसे । *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान १. परि. २ यंत्र २९ Jain Education International रे मांय । कहाय ॥ ॥ ११४. वह वाक्काइएहितो ? aratकाइयाण वि एवं चैव नव गमगा ११५. जहेव उक्काइयाणं, ११६. नवरं - पडागासंठिया पण्णत्ता । For Private & Personal Use Only श० २४, उ० १२, ढा० ४२० ८७ www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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