Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
View full book text
________________
वंदन-अभिनंदन!
स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या
दीक्षा-स्वर्ण-जयंती के प्रसंग पर मेरा हार्दिक अभिनन्दन बिना खेद जो करते हैं।
और शत-शत नमन ! ऐसे ज्ञानी साधु जगत के
- श्रीचन्द सुराना 'सरस', आगरा दुःख समूह को हरते हैं।"
प्रधान सम्पादक : देवेन्द्र भारती अपने साथ अन्य जीवों के उद्धार की शुभ कामना करते हुए समत्वपूर्वक कर्मरत रहने में ही मानव जीवन की
| जैन दर्शन के प्रकांड पंडित | सार्थकता है। साधु जीवन चारित्र्य के इसी स्वरूप को चरितार्थ करता है। सच्चा साधु न लौकिक सुखों की, न
मुझे यह जानकर हर्ष हुआ कि परम पूज्य गुरुदेव स्वर्गिक ऐश्वर्य की और न ही एकांत मोक्ष की कामना | श्री समन मनिजी म.सा. के ५० वें दीक्षा-महोत्सव के करता है; वह तो यही चाहता है कि प्राणि मात्र का दुःख
अवसर पर एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन होने जा रहा दूर हो। उसका समस्त आध्यात्मिक तपोबल जागतिक दुःखों के उन्मूलन में लग जाता है। विगत उन पचास
आप आगम के महन् ज्ञाता एवं जैन तत्त्व ज्ञान के वर्षों से श्रद्धेय श्री सुमन मुनिजी निःस्वार्थ भाव से इसी
सुविख्यात विवेचक हैं। जैन विद्या के क्षेत्र में कार्य करने उदात्त भावभूमि पर साधनारत हैं। यही हमारा परम
वाले हम सभी कार्यकर्ताओं को आपके जीवन एवं साहित्य सौभाग्य है।
से विशेष प्रेरणा प्राप्त होती है। मुझे कई बार आपके 0 इन्दरराज बैद
व्याख्यान श्रवण एवं धार्मिक चर्चा करने तथा आपके श्रेष्ठ भू. उप निदेशक, दूरदर्शन, चेन्नै
साहित्य का स्वाध्याय करने का सुअवसर मिला तथा जैन विद्या विभाग (मद्रास विश्वविद्यालय में स्थापित) की प्रगति
के बारे में भी आपसे यदा-कदा विचार-विमर्श हुआ। (निष्कलंक व्यक्तित्व)
३आप जैन दर्शन के प्रकांड पंडित हैं और प्राकृत श्रद्धेय श्री सुमन मुनि जी म. का व्यक्तित्व अन्तर । तथा जैन विद्या के प्रचार के लिए निरंतर प्रेरणा देते रहते बाह्य रमणीय है। वे भावानात्मक दृष्टि से बहुत उदार, हैं। मुझे आपके सान्निध्य में आयोजित 'प्राकृत सम्मेलन', सहृदय, संवेदनशील और निष्कारण ही दूसरों का उपकार | जो मैसूर में आयोजित हुआ था, में जैन विद्या विभाग के करने में रुचि रखते हैं। सत्य के प्रति वे प्रारम्भ से ही कार्यकर्ताओं के साथ भाग लेने का सुअवसर मिला था। कठोर व निर्भीक रहे हैं। फिर भी व्यावहारिक जीवन में | हम सभी आपके गंभीर पांडित्य से अत्यधिक प्रभावित समन्वय और समझौता करके संघीय एकता व अखंडता के पक्षपाती भी हैं। उनका सरल मानस सभी को अपने
___आप निरंतर आत्म भाव की साधना में निमग्न रहते प्रति आकृष्ट करता है। ऐसे सन्त का जीवन राष्ट्र व संघ के लिए गौरवास्पद है। उनका दीर्घ संयमी जीवन निष्कलंक
हैं। समाज में बढ़ते हुए शिथिलाचार एवं आडंबरों का
आप घोर विरोध करते हैं। आपके निर्भीक विचारों ने होने के साथ सत्य का व्यावहारिक भाष्य जैसा कहा जा
| मुझे बेहद प्रभावित किया। सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org