Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन - अभिनंदन !
होता ऐसा संत पुरुष विरला ही संसार में मिलेगा। | पर आगमज्ञ मुनिश्री दूलहराजजी म. तथा आदरणीय श्री
श्रीचन्दजी रामपुरिया, जो कि तीर्थंकर-वाणी के विशेषज्ञ विरले संत
हैं, ने मुझे बड़ा सहयोग प्रदान किया। मैंने तदुपरांत वह श्रमणसंघ के सलाहकार एवं मंत्री पूज्य श्री सुमनमुनि | संग्रह पूज्य श्री सुमन मुनिजी महाराज को दिखाया तथा जी महाराज उन विरले संतों में से हैं जिनमें साधुता के | उसे और अधिक परिष्कृत एवं संशोधित करने का आग्रह उपर्युक्त सभी गुण विद्यमान हैं। वे महान् आत्मज्ञ संत है, | किया ताकि अनुवाद सही एवं त्रुटि-रहित रहे। मुझे उस निस्पृह हैं और निरहंकारी हैं। आचार्यों ने कहा है - | समय आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कई दिवसों तक उस ___ “आगम चक्खू साहू, इंदियचक्खूणि सबभूदाणि।".
संकलन को पूर्णतः देखकर न केवल अनुवाद में आवश्यक प्रवचनसार ३/३४ अर्थात् दुनियां के सभी प्राणी इन्द्रियों सुधार किया किन्तु मूल सूक्तियों में भी कहीं कहीं जो की आँखवाले हैं किन्तु साधु आगम की आँख वाला है।
संशोधन आवश्यक था, वह कर दिया। मेरे ग्रन्थ "जिनवाणी श्री सुमन मुनिजी महाराज भी आगम की दृष्टि से अपने
के मोती" में न केवल श्वेताम्बर मान्य आगमों में से किन्तु जीवन की समीक्षा तथा ज्ञान, दर्शन और चारित्र से अपने
दिगम्बर मान्य शास्त्रों से भी अनेक सूक्तियां संकलित जीवन को आप्लावित करते रहते हैं। ये उन शिरोमणि
थीं। बहुश्रुत मुनि श्री सुमनमुनि जी के पास उनमें से साधुओं में से हैं जिन पर स्थानकवासी श्रमण संघ को ही
अधिकांश ग्रन्थ भी उपलब्ध थे। आप श्री का आगमनहीं अपितु संम्पूर्ण जैन समाज को गर्व है।
साहित्य पर ही नहीं अपितु प्राकृत, संस्कृत व हिन्दी
भाषाओं के साहित्य व व्याकरण का ज्ञान भी अदभत आगम-मर्मज्ञ
था। ऐसे महान ज्ञानी, तत्त्वज्ञ एवं प्रकांड पाण्डित्यसन् १६६३ में आपका चार्तुमास चेन्नई स्थित टी. सम्पन्न मनीषी के संशोधन से उक्त ग्रन्थ को काफी नगर स्थानक में हुआ था। मैं कभी-कभी उनके व्याख्यान लोकप्रियता प्राप्त हई। मेरे मन में भी आगम का स्वाध्याय सुनने जाता था। उनका आगमिक विश्लेषण इतना मार्मिक
करने की प्रेरणा जगी, जीवन में एक नया जागरण हुआ। था कि उसे सुनकर सभी श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाते थे। मैं इस का श्रेय पूज्य गुरुदेव पण्डितरत्न श्री सुमन मुनिजी उस समय भगवान् महावीर की वाणी का कुछ संकलन महाराज को है, जिससे उऋण होना असम्भव है। कर रहा था। मेरी इच्छा थी कि उसे बहुत ही सुंदर रूप
असाम्प्रदायिक दृष्टिकोण में प्रस्तुत किया जाय। आगम सूक्तियों का अनुवाद अत्यंत दुष्कर कार्य था अतः मैं अनेक आगम-विशेषज्ञों से
- आप श्री के व्याख्यानों में आपका गम्भीर अध्ययन मार्ग दर्शन ले रहा था। मैंने सूत्रों के अनुवाद एवं व्याख्या और विशद चिंतन स्पष्टतया परिलक्षित होता है। सबसे के अनेक ग्रन्थों का पारायण किया और तद्विषयक | बड़ी बात तो यह है कि आपका दृष्टिकोण पूर्णतया सामग्री एकत्रित की/संकलित की। हमारे चेन्नई असाम्प्रदायिक व समन्वयात्मक है। समाज में बढ़ते हुए विश्वविद्यालय के जैन विद्या विभाग के प्रोफेसर डॉ. | आडम्बरों से आप चिंतित हैं। तपस्या के समय भी अनेक छगनलालजी शास्त्री ने उस संकलन को संशोधित किया। प्रकार के प्रदर्शन किये जाते हैं जो आपको कदापि पसंद मैं श्री जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं में भी एक सप्ताह | नहीं है। आप स्पष्ट कहते हैं - "तपः क्रिया मान-सम्मान के लिए सम्बन्धित ग्रन्थों के अध्ययनार्थ गया था। वहाँ | के लिए या समाज से वाहवाही प्राप्त करने के लिए नहीं
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