Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन-अभिनंदन!
आसोज सुदी १३ (दीक्षातिथि) की पुनरावृत्ति भी है। | और श्रद्धेय हैं। प्रथम का मैं एम.ए. वर्गीय छात्र रहा भारतीय और पाश्चात्य तिथियों की समरूपता का यह और दूसरे का मैं मौन प्रशंसक-अनुमोदक हूँ। सुखद संयोग संत जीवन की विशिष्ट उपलब्धि ही तो है।
श्रद्धेय श्री सुमनमुनि जी के प्रथम साक्षात् दर्शन मैंने ___ मुनि वही है जो मनन करता है, वर्तमान और भविष्य २७ सितंबर १-६-६३ ई. को मद्रास के माम्बलम-स्थित का चिंतन करता है, तथा लोक-परलोक का अनुशीलन जैन स्थानक में आयोजित एक समारोह में किये थे। करता रहता है। यथाः
श्रीमान रिद्धकरण जी बेताला, श्रीमान भीकमचंदजी गादिया 'यो मुनाति उभो लोके मुनि तेन पवुच्चति।'
आदि धर्मनिष्ठ स्नेही बंधुजनों के आदेश पर महाराज
साहब के ४४वें दीक्षा-दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित धम्मपद की तरह तिरुक्कुरल भी घोषित करता है:
उक्त समारोह में अपने हृदयोद्गार व्यक्त करने का सौभाग्य भव का दुख, सुख मोक्ष का, जिसको दोनों ज्ञात । मुझे मिला था। उसी सभा में प्रथम बार मैंने उनका ऐसा सन्त मुमुक्षु ही, होता जग सुख्यात ।। व्याख्यान सुना। सधी हुई वाणी, भाषा पर असाधारण
(तिरु.३/३) अधिकार, आत्मीयता से भरे हुए वचन, सरल मर्मस्पर्शी वास्तव में अभिनिष्क्रमण वही करता है जिसे संसार
शैली, विनय से अभिसंचित विद्वत्ता; श्रद्धेय सुमन मुनि की की निस्सारता और मोक्ष की महत्ता का पूर्वानुमान हो उस वर्चस्वी वाग्मी-छवि को कोई कैसे भुला सकता है? . जाता है। लगभग पचास बरस पहले ऐसा ही पूर्वानुमान |
शुक्ल प्रवचन (भाग एक) की एक प्रति स्वयं मुनिश्री ने बीकानेर (राजस्थान) के पांचूँ गाँव के एक पंद्रह वर्षीय अपने हस्ताक्षरपूर्वक मुझे साशीर्वाद प्रदान की थी। बालक 'गिरधारी' को हुआ था, जिसने पर्याप्त चिंतन- __ शुक्ल प्रवचन' को पढ़कर लगा कि पूज्य सुमन मनन के उपरांत मुनि-जीवन स्वीकार किया। कौन जानता | मुनिजी का व्यक्तित्व आध्यात्मिक साधना और साहित्यिक था कि चौधरी भीवराजजी और वीरांदे जी के मँझले | प्रतिभा के आलोक से दीप्तिमान है। श्रीमद रायचंद्र के लाड़ले का कुसुम-सा सुकुमार तारुण्य एक दिन संयम के | आत्मसिद्विशास्त्र को आधार बना कर दिये गये प्रवचनों विशाल पर्वत को उठाने का साहस दिखाएगा। वही को पढ़ने से प्रतीत होता है कि विद्वान मुनिजी प्रखर तरुण 'गिरधारी' आज 'सुमन मुनि' हैं, जो विगत पाँच
वक्ता हैं, कुशल व्याख्याता हैं और वर्चस्वी शास्ता हैं। दशकों से संयम के पथ पर अग्रसर हैं।
उनकी व्याख्याएँ आत्मा-परमात्मा के स्वरूप की प्रतीति यह मेरा परम सौभाग्य है कि मैं जीवन में दो विशिष्ट | कराने में समर्थ भूमिका निभाती हैं। वे गूढ़ से गूढ़ सूत्रों सुमनों के संपर्क में आया हूँ। पहले हैं, हिंदी के मर्मज्ञ का सरलीकरण करके उन्हें ग्राह्य बना देने की विलक्षण साहित्यकार और भाषाशास्त्री श्रद्धेय गुरुवर डॉ.
क्षमता रखते हैं। प्रमाण है - आत्मसिद्धि शास्त्र के दसवें अंबाप्रसादजी 'सुमन' जिन्होंने मेरे साहित्यिक संस्कारों को
दोहे के द्वितीय चरण - 'विचरे उदय प्रयोग' की व्याख्या। परिपुष्ट करने की महती कृपा की, और दूसरे हैं, श्रमणसंघीय | शब्द और अर्थ के मर्म को जानने की कला कोई सुमन सलाहकार और मंत्री श्रद्धेय मुनिवर श्री सुमनकुमारजी | मुनिजी से सीखें। उनके व्याख्यानों में उनका कवि-हृदय महाराज, जिनके पांडित्य पूर्ण साध व्यक्तित्व से मैं अत्यधिक | भी स्पष्ट झलकता है। सुंदर और मनहर काव्यात्मक सूक्तियाँ प्रभावित-प्रेरित हुआ हूँ। दोनों ही मेरे लिए वरेण्य, प्रणम्य | उनके पांडित्य को लालित्य प्रदान करती हैं। यथाः
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