Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
श्रामण्य जीवन को सफल, सार्थक एवं धन्य बनाया है।।
| संत प्रवर : सुमन मुनिवर । ऐसे श्रमणवर्य सन्त की शिक्षा-दीक्षा-जयन्ति राष्ट्र, समाज एवं धर्म संघ को प्रगतिशील बनाने में अवश्य ही पथ
दीक्षा-स्वर्ण जयंती वर्ष के सदर्भ में प्रदर्शक सिद्ध होगी। ऐसा मुझे विश्वास है। परम श्रद्धेय श्रमणवर्य मुनि श्री सुमनकुमार श्री म.
जीवन के समस्त आचरणों का समष्टिगत नाम चरित्र की दीक्षा-स्वर्णजयन्ति समारोह का विराट् आयोजन वस्तुतः
है। जब ये आचरण शुभ और निःस्वार्थ भाव से प्रेरित ज्ञान-दर्शन - चारित्र युक्त महिमामय श्रामण्य जीवन का होते हैं, तो वे सच्चरित्र की सृष्टि करते हैं। जीवन-भर सत्कार एवं सम्मान है। इसके लिए मैं इसके आयोजकों अपनाया जानेवाला सच्चरित्र ही चारित्र्य कहलाता है। को धन्यवाद देता हूँ।
इस चारित्र्य के मार्ग पर चरणन्यास करनेवाले ही साधु या ___ मैं अनेक पूज्य सन्त-सतियों के निकट परिचय में
संत होते हैं। मन-वचन-कर्म से सदाचरणों का पालन आया हूँ लेकिन पूज्य श्री सुमनमुनि जी के उत्कृष्ट श्रामण्य
करते हुए समर्पित जीवन जीने वाले संत-महात्माओं द्वारा जीवन के विशुद्ध आचार-विचार, आहार-विहार, प्रचार
ही संसार का उद्धार संभव है। पर चारित्र्य के मार्ग पर प्रसार एवं चतुर्विध संघ के समुत्थान के लिए सर्वोदयमूलक
चलना सहज और सरल नहीं है, वह तो 'तरवारि की धार जो अहिंसा नीति एवं विवेकपूर्ण अनेकान्तदृष्टि से मैं बहुत
पे धावनो है। ऐसे ही चारित्र्य-धर्मी साधुओं की 'नमो ही प्रभावित हुआ हूँ। ऐसे प्रतिभा सम्पन्न एवं तेजस्वी | लोए सव्व साहूणं' कहते हुए वंदना की गई है। 'नवकार सन्त समाज में विरले ही दृष्टिगोचर होते हैं। ऐसे तेजस्वी | मंत्र' के 'आयरियाणं' और 'उवज्झायाणं' पदों का समाहार 'विरले' सन्तों में पूज्य श्री सुमनमुनि जी म. भी है। | भी ‘साहूणं' में हो जाता है। इसीलिए साधु का पद वस्तुतः श्री सुमनमुनि जी म. अपने नाम के अनुरूप | मंगलकारी और लोकोत्तम माना गया है। यही कारण है गुणसम्पन्न भी है। सुमन - सुमनस्वी हैं साथ ही सुमन का | कि जीवात्मा भव-भव में 'साहू सरणं पवज्जामि' का उद्घोष बहिरंग सत्यं, शिवं, सुन्दरं है तो अन्तरंग भी सुरभित है। करती हुई और अरिहंत के बताये हुए मार्ग का अनुसरण आप श्री का श्रामण्य जीवन बाहर से जैसा मनोहारी एवं
करती हुई सिद्धत्व के अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ती रहती चित्ताकर्षक है वैसे ही अंदर से भी ज्ञान-दर्शन-चारित्र की 'सौरभ' से सुवासित भी है। जैसा आपश्री का वेष
___आत्मोद्धार की प्रेरणा देने वाले आदर्श संत-महात्माओं परिधान शुक्ल है वैसे ही आचार-विचार भी निष्कलंक
में एक नाम है - परम श्रद्धेय मुनिवर श्री सुमनकुमार जी एवं शुक्ल है। आप श्री का श्रामण्य जीवन ही शुक्ल नहीं है, अपितु ज्ञान-दर्शन-चारित्र की त्रिपथगा की पवित्र -
महाराज साहब का, जिनकी दीक्षा की स्वर्ण-जयंती का निर्मल रसधारा से परिप्लावित है।
वर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाने के लिए समूचा जैन समाज
कृतज्ञतापूर्वक समुद्यत है। पूज्य मुनिवर आश्विन शुक्ला ऐसे सन्तरल श्री सुमनमुनि जी म. के श्रामण्य जीवन
१३, संवत् २०५६ विक़मी तदनुसार २३ अक्टूबर को शतशः अभिवंदन के साथ विनम्र अभिनंदन! श्रद्धावनत
१६६६ ईस्वी, शनिवार को अपने दीक्षित जीवन के शांतिलाल वनमाली सेठ पचासवें वर्ष में प्रवेश करेंगे। २३-१०-१६५० को प्रव्रज्या
संस्थापक एवं संचालक अंगीकार करने वाले श्रद्धेय मुनिवर का ५० वाँ दीक्षासन्मति विद्यापीठ, जयनगर, बेंगलोर | दिवस २३-१०-१६६६ को मनाया जा रहा है। इसी दिन
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