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श्रीपाल चरितम्
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अर्थ - तदनंतर राजा जितने और दिशि तरफ चले उतने आगे कोढ़ियोंका पेड़ाभी जल्दी २ उसी दिशातरफ पलटा ॥ २० ॥
राया भणेइ मंतिं, पुरओ गंतूणिमे निवारेसु । मुहमग्गियंपि दाउं, जेणेसिं दंसणं न सुहं ॥ २१ ॥ अर्थ — तब राजा मंत्री से कहे तुम आगे जाके इन्होको हटाव जो मांगे सो देके इस कारणसे इन कोढ़ियोंका दर्शन अच्छा नहीं है ॥ २१ ॥
जा तं करेइ मंती, गलियंगुलिनामओ दुयं ताव। नरवर पुरओ ठाउं, एवं भणिउं समाढत्तो ॥ २२ ॥
अर्थ - जितने राजाका बचन मंत्री करे उतने गलितांगुलि नामका मंत्री शीघ्र राजाके आगे आके खड़ा रहके इस प्रकारसे कहना शुरू किया ॥ २२ ॥
सामिय ! अम्हाण पहू, उंबरनामेण राणओ एसो । सवत्थवि मन्निज्जइ, गुरुएहिं दाणमाणेहिं ॥२३॥
अर्थ - हे स्वामिन् ! यह हमारा स्वामी उम्बर राजा सब ठिकाने बहुत दानमानसे माना जावे है राजादिक लोग सत्कार करे है || २३ ॥ | तेणऽम्हाणं धण कणय, चीरपमुहेहिं कीरइ न किंपि । एयस्स पसाएणं, अम्हे सवेवि अइसुहिणो ॥२४॥
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भाषाटीकासहितम्.
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