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श्रीपाल
चरितम् ।
॥९४॥
CACACARSAKARAN
धवलो करेइ एरिस,-मणत्थमुवगारिणोवि कुमरस्स । कुमरो एयस्स अणत्थ-कारिणो कुणइ उवयारं भाषाटीका 81 अर्थ-धवलसेठ उपकारी कुमरपर ऐसा अनर्थ करे है कुमर अनर्थ करनेवाला धवलसेठका उपकार करे है ॥ ७४३॥|8| सहितम्.
जह जह कुमरस्स जसं धवलं, लोयंमि वित्थरइ एवं। तह तह सोधवलोविहु, खणखणे होइ कालमुहो४४ है अर्थ-जैसे २ कुमरका उज्वल यश लोकमें कथित प्रकारसे विस्तार पावे वैसा २ निश्चयकरके धवलसेठभी क्षण २ में स्याम मुख होवे ॥ ७४४ ॥ तहवि कुमारेणं सो,आणीओ नियगिहं सबहुमाणं । मुंजाविओ य विस्सामिओ य, नियचंदसालाए ४५/४ ___ अर्थ-तथापि कुमरने बहुमान सहित अपने घर जैसे बने वैसा बुलाया नाना प्रकारका भोजन कराया बाद चन्द्र शाला अपने घरके ऊपरकी भूमिमें रक्खा ॥ ७४५ ॥
तत्थ टिओ सो चिंतह, अहह अहो केरिसो विही वंको।जमहं करेमि कज्जं, तं तं मे निप्फलं होइ ७४६ BI अर्थ-वहां चन्द्रशालामें रहा हुआ वह धवलसेठ विचारे क्या विचारे सो कहते हैं अहह इति खेदे अहो इति
आश्चर्ये विधि, देव मेरेपर कैसा वक्र है मैं जो २ कार्य कर्ता हूं वह २ मेरे निष्फल होवे है ॥ ७४६ ॥ द्र एवं ठिएवि, अज्जवि, मारिजइ जइ इमो मए कहवि । ता एयाओ सिरीओ, सबाओ हुँति महचेव ७४७।
GARSASKALIGUSLSX
का॥१४॥
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