Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 324
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SALASSASHISHA नाहियवायसमज्जिय, पावभरोवि हुपएसिनरनाहो।जं पावइ सुररिद्धिं, आयरियपयप्पसाओ सो १३०७ है। __ अर्थ-नास्तिक बादसे संचय किया पाप समूहका जिसने ऐसा परदेशी राजा उसने जो देव ऋद्धिः पाई वह आचार्यपदका प्रसाद है ॥ १३०७॥ लहुयंपि गुरुवइ8, आराहंतेहिं वयरमुवझायं । पत्तो सुसाहुवाओ, सीसेहिं सीहगिरिगुरुणो ॥१३०८॥ अर्थ-सिंहगिरि गुरूने कहा छोटी उमरकाभी बज्र नामका उपाध्यायकी आराधना करते हुए सिंहगिरि गुरूके शिष्योंने सुसाधुवाद नाम अच्छे बिनीत शिष्य है ऐसी प्रसिद्धि पाई॥ १३०८ ॥ साहुपयविराहणया, आराहणया यदुक्खसुक्खाइं। रुप्पिणिरोहिणीजीवहिं, किंन हु पत्ताइं गुरुयाई १३०९ है। अर्थ-साधुपदकी बिराधना और आराधना करके क्रमसे रुक्मिणी रोहिणीके जीवोंने बहुत दुःख और सुख क्या नहीं पाए अपि तु पाए हैं ॥ १३०९॥ दसणपयं विसुद्धं, परिपालंतीइ निच्चलमणाए । नारीइवि सुलसाए, जिणराओ कुणइ सुपसंसं ॥१३१०॥ ___ अर्थ-विशुद्धनिर्मल सम्यक् दर्शनपद सर्वप्रकारसे पालती भई और निश्चल मन जिसका ऐसी सुलसा नामकी नाग सारथिकी स्त्रीकी प्रशंसा श्रीमहावीर स्वामीने करी ॥ १३१० ॥ नाणपयस्स विराहण, फलंमिनाओ हवेइमासतुसो।आराहणा फलंमी, आरहणं होइ सीलमई For Private and Personal Use Only

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