Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 322
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmanair ACASS 1. अर्थ-इस प्रकारसे सम्यक् स्तुति करता हुआ श्रीपाल राजा कोई प्रकारसे नाम बड़े प्रयत्नसे नवपदोंमें लीन मन जिसका ऐसा अपने आत्माको नवपदमई देखे ॥ १२९८ ॥ एयंमि समयकाले, सहसा पुन्नं च आउयं तस्स । मरिऊण सिरिपालो, नवमे कप्पंमि संपत्तो ॥१२९९॥ ___ अर्थ-श्रीपाल राजा नवपद मई अपने आत्माको देखे तिस समय रूप कालमे अकस्मात् श्रीपाल राजाका आयुः पूर्ण भया तब श्रीपाल राजा काल धर्म पाके नवमे आनत देवलोकमें देव हुआ ॥ १२९९॥ माया य मयणसुंदरिपमुहाओ राणियाओ समयंमि।सुहझाणा मरिऊणं, तत्थेव य सुरवरा जाया॥१३००॥ है| अर्थ-माता कमलप्रभा और मदनसुंदरी प्रमुख रानियों अपने आयुः के अंतसमयमें शुभ अध्यवसायसे मरण Pापाके उसी नवमे देवलोकमें प्रधान देव भए ॥ १३००॥ तत्तो चविऊण इमे, मणुयभवं पाविऊण कयधम्मा।होहिंति पुणो देवा, एवं चत्तारि वाराओ ॥१३०१॥ | अर्थ-तदनंतर नवमे देवलोकसे च्यवके सर्व श्रीपालादि जीव मनुष्यभव पाके धर्म करके और देव होवेगा इस दप्रकारसे चार वार मनुष्यका भव और ४ देवका भव होगा ॥ १३०१॥ सिरिपालभवाउ नवमभवंमि, संपाविऊणमणुयत्तं । खविऊण कम्मरासिं, संपाविस्संति परमपयं १३०२ A CCASSAX RALACREAM For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334