Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 332
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - नव पदोंका माहात्म्य श्रेष्ठ है जिसमें ऐसी यह श्रीपाल राजाकी कथा शुद्धभावसे सुनते हुए और कहते हुए भव्योंके कल्याण करो ।। १३३९ ॥ सिरिवज्जसेणगणहर, पट्टप्पहू हेमतिलयसूरीणं । सीसेहिं रयणसेहर, सूरीहिं इमा हु संकलिया ॥१३४० ॥ अर्थ- श्रीवज्रसेन आचार्यके पदमें हुए श्रीहेमतिलकसूरि उन्होंके शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिने यह श्रीपालकी कथा रची प्राचीन कथाको देखके ॥। १३४० ॥ तस्सीसहेमचंदेण, साहुणा विक्कमस्सवरसंमि । चउदसअट्ठावीसे, लिहिया गुरुभत्तिकलिएणं ॥ १३४१ ॥ अर्थ — उन्होंके शिष्य हेमचन्द्र साधुने विक्रम सम्वत् १४२८ में चौदह से अट्ठाईसमें लिखीं कैसा हेमचन्द्र गुरुकी भक्तिसहित ऐसा ॥ १३४१ ॥ सायर मेरू जा महियलंमि, जा नहलंमि ससि सूरा, वति तावनंदओ, वाइजंता कहा एसा १३४२ अर्थ - जबतक पृथ्वीपर समुद्र और सुमेरु पर्वत यह दोनों वर्ते है और आकाशमें जबतक चंद्रमा सूर्य है तबतक यह श्रीपाल राजाकी कथा वाच्यमाना समृद्धि पाओ ।। १३४२ ॥ यह श्रीपाल नरेंद्र प्राकृत कथाकी संस्कृत टीका अनु सार भाषाटीका बृहत् खरतर गच्छीय भ० श्रीजिन कृपाचंद्रसूरिने लिखि वि० सं० १९८० स्वपरअनुग्रहके लियें श्रीरस्तु ॥ इति श्रीपालनरेंद्रकथा श्रीसिद्धचक्रमाहात्म्ययुता समाप्ता ॥ For Private and Personal Use Only

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