Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 331
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तसहितम्. श्रीपाल- अर्थ-इच्छाके रोकनेसे शुद्ध सम्बर जिसके और समभावसे परणित कर्मोकी निर्जरा करता हुआ यह आत्माहीभाषाटीकाचरितम् तपस्वरूप तप मई है ॥ १३३५ ॥ Pएवं च ठिए अप्पाणमेव, नवपयमयं वियाणित्ता । अप्पंमि चेव निच्चं, लीणमणा होह भो भविया १३३६ ___ अर्थ-इस प्रकारसे होनेसे आत्माहीको नवपद मई जानके अहो भन्यो आत्मस्वरूपमेंही लीनमन जिन्होंका ऐसे होवो ॥ १३३६ ॥ दातं सोऊणं सिरिवीरभासियं सेणिओ नरवरिंदो। साणंदो संपत्तो, निययावासं सुहावासं ॥ १३३७॥ | अर्थ-यह श्रीमहावीरस्वामीका कहाहुआ वचन सुनके श्रेणिकराजा भगवान्को बन्दना करके आनन्दसहित सुखका स्थान ऐसे अपने घर गया ॥ १३३७ ॥ सिरिवीरजिणोविह, दिणयस्वकुग्गहपहं निवारितो। भवियकमलपडिबोहं,कुणमाणो विहरइ महीए ३८ __ अर्थ-श्रीमहावीरस्वामीभी सूर्यके सदृश कुग्रहपथको अर्थात् कुमार्गका निवारण करता भव्य कमलोंको प्रतिबोध तू ॥१६५॥ | विकास करता पृथ्वीपर विहार करे ॥१३३८ ॥ एसा नवपयमाहप्पसार, सिरिपालनरवरिंदकहा। निसुणंतकहताणं, भवियाणं कुणइ कल्लाणं ॥ ३९ ॥ ALANKALS For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 329 330 331 332 333 334