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तं च कुमारीइ कलं, सयलोवि जणो पसंसए जाव । ताव कुमारो वामण,-रूवधरो वजरइ एवं ७९. I अर्थ-जितने उस कुमरीकी कलाकी सबलोक प्रशंसाकरे उतने वामनरूप धारनेवाला कुमर श्रीपाल इस प्रकारसे | कहे ॥ ७९०॥ अहो सुजाणो कुंडल,-पुरलोओ केरिसो इमो सवो। तो संकिया कुमारी, उवहसियं मन्नए अप्पं ७९१ | अर्थ-कैसे कहे सो कहते हैं अहो इति आश्चर्ये झूठी प्रशंसा करनेमें यह सब कुंडलपुरका लोग कैसे विचक्षण है अर्थात् अज्ञानवान है वाद ऐसा कुमरका बचन सुनके कुमरी शंकित भई कुमरने मेरा हास्य किया ऐसा मानती भई ॥७९१॥ अप्पेइ नियं वीणं तस्स कुमारस्स रायधूयावि । कुमरोवि सारिऊणं, तं च असुद्धं कहइ एवं ॥७९२॥ ___ अर्थ-तब राजकन्याभी उस कुमरको अपनी वीणा बजानेको देवे कुमरभी उस वीणाको सारके अशुद्ध कहे ॥७९२॥
तंती सगब्भरूवा, गलगहियं तुंवयं च एयाए । दंडोवि अग्गिदट्रो, तेण असुद्धा मए कहिया ७९३ PI अर्थ-कैसे सो कहते हैं इस वीणाकी तंत्री सगर्भरूप जिसका ऐसी फटी भई है और तूंबा गले में लगा हुआ है और 13|इसका दंड अग्निसे जला हुआ है इस लिये इस वीणाको मैंने अशुद्ध कही ॥ ७९३ ॥ दाते दंसिऊण सम्मं, आसारेऊण वायए जाव । ताव पसुत्तुव जणो, सबोवि अचेयणो जाओ ॥७९॥
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