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श्रीपालचरितम्
जह अट्ठदिसाहिं अलंकिओवि, मेरू सरेइ उदयसिरिं।जह बंछइ जिणभत्तिं, अडग्गमहिसीजुओवि हरी भाषार्टीका__अर्थ-कौन किसके जैसा आठ पूर्वादि दिशा करके अलंकृत शोभित मेरु सूर्योदय लक्ष्मीको याद करे है और जैसे | आठ इन्द्रानियों सहितभी इन्द्र नवमी जिन भक्तिकी वांछा करे है ॥ ९२२॥ अविअट्ठदिट्ठिसहिओ, जहा सुदिट्ठी समीहए विरई। साहू जहट्ठपवयण, माइजुओवि हुसरइ समयं ९२३/8 ___ अर्थ-और जैसे आठ दृष्टि मित्रा १ तारा २ वला ३ प्रदीपा ४ स्थिरा ५ कान्ता ६ प्रभा ७ परा ८ सहितभी सम्यक् दृष्टि आत्मा विरति सावद्ययोग त्याग रूपकी इच्छा करे है आठ दृष्टिका स्वरूप योगदृष्टि समुच्चय ग्रंथसे जानना और जैसे आठ प्रवचन माता समिति ५ गुप्ति ३ सहितभी साधु निश्चय समता समभावरूपका स्मरण करे ॥९२३॥ जह जोई अट्ठमहासिद्धि,-समिद्धोवि ईहए मुत्तिं। तह झायइ पढमपियं, सो अट्ठपियाइं सहिओवि ९२४ __ अर्थ-और जैसे योगी ज्ञान, दर्शन चारित्रात्मक योगयुक्त पुरुष आठ महा सिद्धि अणिमादिक करके समृद्धभी है। नवमी मुक्तिकी इच्छा करे है उसी प्रकारसे श्रीपालराजा आठ स्त्रियों सहितभी पहली स्त्री मदनसुंदरीका निरंतर हृदशायमें स्मरण करे ॥ ९२४॥
तो तीए उक्कंठियचित्तो, जणणीइ नमणपवणो य । सो सिरिपालो राया, पयाणढक्काओ दावेइ ॥९२५॥
SANCHARACREARCAKAM
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