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श्रीपाल - चरितम्
॥ १२२ ॥
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अर्थ - तदनंतर श्रीपालराजा शीघ्रं अरिदमनकुमरको बुलाके सुरसुंदरीको बहुत ऋद्धिसहित अरिदमनकुमारको दिया ॥ ९८३ ॥
सुरसुंदरिसहिएणं, अरिदमणेणावि सुद्धसमत्तं । सिरिपालरायमयणा, - पसायओ चेव संपत्तं ॥९८४॥ अर्थ- सुरसुंदरीसहित अरिदमन कुमरने श्रीपाल राजा और मदनसुंदरीके प्रसादसे सुद्ध सम्यक्त्व पाया ॥ ९८४ ॥ जे ते कुट्ठियपुरिसा, सत्तसया आसि तेवि मयणाए । वयणेण विहियधम्मा, संजाया संति नीरोगा ॥ ९८५ ॥ अर्थ - जो ७०० कोढ़ी पुरषथा वह मदनसुंदरीके बचनसे किया धर्म जिन्होंने ऐसे निरोग भए हैं ॥ ९८५ ॥ तेवि हु सिरिसिरिपालं, भूवालं पणमयंति भत्तीए । रायावि कयपसाओ, ते सवे राणए कुणइ ॥ ९८६ ॥
अर्थ - वह ७०० पुरुष श्रीयुक्त श्रीपाल राजाको भक्तिसे नमस्कार करें राजा श्रीपालभी किया प्रसाद जिसने ऐसा उन सर्वोको राणा ऐसा पद छोटा राजा विशेष देवे अर्थात् राणा किया ॥ ९८६ ॥ मइसागरोवि मंती, आगतूणं नमेइ निवपाए । सोवि पुवंव रन्ना, कओ अमच्चो सुकयकिच्चो ॥ ९८७ ॥
अर्थ - मतिसागर मंत्री भी आके राजा श्रीपाल के चरणोंमें नमस्कार करे राजा श्रीपाल भी पहलेके जैसा मतिसागरको मंत्री किया कैसा है मंत्री शोभन कार्य है जिसका ऐसा ॥ ९८७ ॥ ससुराण सालयाणं, माउलपमुहाण नरवराणं च । अन्नेसिंपि भडाणं, बहुमाणं देइ सोराया ॥ ९८८ ॥
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भाषाटीकासहितम्.
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