Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 316
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-जिस ज्ञानकरके भक्षाभक्ष, भक्ष अन्नादि अभक्ष मांसादि पेय बनसे छाना हुआ पानीआदि अपेय मदिरादि गम्य स्वख्यादि अगम्य परस्त्री भगिन्यादि कृत्य अहिंसादि अकृत्य हिंसादिक जाना जावे है वह सद्ज्ञान मेरे प्रमाण है ॥ १२७३ ॥ सयलकिरियाणमूलं, सद्धा लोयंमि तीइ सद्धाए। जंकिर हवेइ मूलं, तं सन्नाणं मह पमाणं ॥१२७४॥ . अर्थ-लोकमें सर्वक्रिया सर्वशुभअनुष्ठानका मूल श्रद्धा है श्रद्धाका मूल ज्ञान होवे है वह सद्ज्ञान मेरे प्रमाण है ॥ १२७४ ॥ जं मइसुयओहिमयं, मणपज्जवरूवकेवलमयं च । पंचविहं सुपसिद्धं, तं सन्नाणं मह पमाणं ॥१२७५॥ अर्थ-जो ज्ञान पांचप्रकारका सुप्रसिद्ध मतिज्ञान १ श्रुतज्ञान २ अवधिज्ञान ३ मनपर्यवज्ञान ४ केवलज्ञान ५ स्वरूप जिसका वह सद्ज्ञान मेरे प्रमाण है ॥ १२७५ ॥ केवलमणोहिणं पि हु, वयणं लोयाण कुणइ उवयारं। जं सुयमइरूवेणंतं सन्नाणं मह पमाणं॥१२७६ ॥ अर्थ-केवल १ मनपर्यव २ अवधि ३ इन तीनज्ञानधारनेवालोंका वचन भव्यजीवोंके मति श्रुतज्ञान रूपसे है उपकार करे है वह सद्ज्ञान मेरे प्रमाण है ॥ १२७६ ॥ सुयनाणं चेव दुवालसंग,-रूवं परूवियं जत्थ । लोयाणुवयारकर, तं सन्नाणं मह पमाणं ॥ १२७७ ॥ CROSAGAR For Private and Personal Use Only

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