Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 319
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल अर्थ-जिस चारित्रको अंगीकार करके रांक वगैरहभी जीव तीनलोकके सवलोकोंके पूजनीय होते हैं वह चारित्रभाषाटीकाहजगत्में जयवंता व” ॥ १२८६ ॥ चरितम् है सहितम्जं पालंताण मुणीसराण, पाए नमंति साणंदा। देविंददाणविंदा, तं चारित्तं जए जय ॥ १२८७॥ ॥१५९॥ ___ अर्थ-जिस चारित्रको पालता हुआ मुनीश्वरोंके चरणोमें देवेन्द्र दानवेन्द्र हर्ष सहित नमस्कार करें है वह चारित्र जगत्में जयवन्तो होवो ॥ १२८७ ॥ जं चाणंतगुणंपि ह, वन्निज्जइ सत्तरमेय दसभेयं । समयंमि मुणिवरेहि, तं चारित्तं जए जयइ॥१२८८॥ | अर्थ-और जो चारित्र अनन्तगुण जिसमें ऐसा निश्चय सिद्धान्तमें मुनिवरोंने पांच आश्रवसे विरमण और पांच इन्द्रियका निग्रह और चार कषायका जय तीनदण्डकी विरति यह सत्तरह भेद वर्णनकिया है तथा क्षमा मार्दव आर्य|वादी दुशभेद जिसके ऐसा प्रसिद्ध चारित्र जगत्में जयवन्तो होवो ॥ १२८८ ॥ समिईओ गुत्तीए, खंतीपमुहाओ मित्तियाइओ। साहंति जस्स सिद्धिं, तं चारित्तं जए जयइ ॥१२८९॥ ___ अर्थ-इरियासमित्यादि समिति ५ मनोगुप्त्यादि गुप्ति ३ क्षमाप्रमुख दशप्रकारका यतिधर्म मैत्री १ प्रमोद २ करुणा ३ मध्यस्था ४ भावना सर्व प्राणियोंमें मैत्री १ गुणवानमें प्रमोद २ दुखियोंमें दया दुष्टोंमें माध्यस्थ यह पदार्थ ॥१५९॥ जिस चारित्रकी सिद्धिनाम निष्पत्तिको साधे है वह चारित्र जगत्में जयवन्ता होवो ॥ १२८९ ॥ For Private and Personal Use Only

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