Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 312
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बन्धादि चारकषाय क्रोधादिक का त्याग किया जिन्होंने ऐसे दान शील तप भाव चार प्रकार के धर्मका उपदेश करें उन सर्व साधुओंको मैं नमस्कार करूं ॥ १२५७ ॥ उझियपंचपमाया निज्जियपंचिदिया य पार्लेति, पंचेव य समिईओ, ते सवे साहुणो वंदे ॥ १२५८ ॥ अर्थ - पांच प्रमाद मद्यादिकोंका त्याग किया जिन्होंने मद १ विषय २ कषाय ३ निद्रा ४ विकथा ५ और पांच इन्द्रियों के जीतनेवाले ऐसे पांच समिति पालते हैं इरिया १ भाशा २ एषणा ३ निक्षेपणा ४ पारिठावणिया ५ उन सर्व | साधुओंको मैं नमस्कार करूं ।। १२५८ ॥ |च्छज्जीवकायरक्खण, - निउणा हासाइ छक्क मुक्का जे । धारंति य वयछकं, ते सबै साहुणो वंदे ॥ १२५९॥ अर्थ - पृथ्वी १ अप २ तेजो ३ वायु ४ वनस्पति ५ त्रशकाय इन छै जीव कायकी रक्षा करनेमें निपुण हास्यादि ६ से रहित ऐसे प्राणातिपातविरमणादि रात्रिभोजनविरमण पर्यंत ६ व्रतोंको धारे उन सर्व साधुओंको मैं नमस्कार करूं ।। १२५९ ॥ जे जियसत्तभया गय, - अट्टमया नवावि बंभगुत्तीओ। पालंति अप्पमत्ता, ते सबै साहुणो वंदे ॥१२६० ॥ अर्थ-जीता है इहलोक भयादि सातभय जिन्होंने और गया जातिमदादि ८ आठ मद जिन्होंसे और प्रमादरहित भए नव प्रकारकी ब्रह्मगुप्ति को पालते हैं उन सर्व साधुओंको मैं नमस्कार करूं ॥ १२६० ॥ For Private and Personal Use Only

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