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बन्धादि चारकषाय क्रोधादिक का त्याग किया जिन्होंने ऐसे दान शील तप भाव चार प्रकार के धर्मका उपदेश करें उन सर्व साधुओंको मैं नमस्कार करूं ॥ १२५७ ॥
उझियपंचपमाया निज्जियपंचिदिया य पार्लेति, पंचेव य समिईओ, ते सवे साहुणो वंदे ॥ १२५८ ॥
अर्थ - पांच प्रमाद मद्यादिकोंका त्याग किया जिन्होंने मद १ विषय २ कषाय ३ निद्रा ४ विकथा ५ और पांच इन्द्रियों के जीतनेवाले ऐसे पांच समिति पालते हैं इरिया १ भाशा २ एषणा ३ निक्षेपणा ४ पारिठावणिया ५ उन सर्व | साधुओंको मैं नमस्कार करूं ।। १२५८ ॥
|च्छज्जीवकायरक्खण, - निउणा हासाइ छक्क मुक्का जे । धारंति य वयछकं, ते सबै साहुणो वंदे ॥ १२५९॥
अर्थ - पृथ्वी १ अप २ तेजो ३ वायु ४ वनस्पति ५ त्रशकाय इन छै जीव कायकी रक्षा करनेमें निपुण हास्यादि ६ से रहित ऐसे प्राणातिपातविरमणादि रात्रिभोजनविरमण पर्यंत ६ व्रतोंको धारे उन सर्व साधुओंको मैं नमस्कार करूं ।। १२५९ ॥
जे जियसत्तभया गय, - अट्टमया नवावि बंभगुत्तीओ। पालंति अप्पमत्ता, ते सबै साहुणो वंदे ॥१२६० ॥ अर्थ-जीता है इहलोक भयादि सातभय जिन्होंने और गया जातिमदादि ८ आठ मद जिन्होंसे और प्रमादरहित भए नव प्रकारकी ब्रह्मगुप्ति को पालते हैं उन सर्व साधुओंको मैं नमस्कार करूं ॥ १२६० ॥
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